सुलझी हुई मनोवृत्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - ४१
? अमृत माँ जिनवाणी से - ४१ ?
"सुलझी हुई मनोवृत्ति"
एक समय एक महिला ने भूल से आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज को आहार में वह वस्तु दे दी, जिसका उन्होंने त्याग कर दिया था। उस पदार्थ का स्वाद आते ही वे अंतराय मानकर आहार लेना बंद कर चुपचाप बैठ गए।
उसके पश्चात उन्होंने पाँच दिन का उपवास किया और कठोर प्राश्चित भी लिया।यह देखकर वह महिला महाराज के पास आकर रोने लगी कि मेरी भूल के कारण आपको इतना कष्ट उठाना पड़ा।
महाराज ने उस वृद्धा को बड़े शांत भाव से समझाते हुए कहा- "तू क्यो खेद करती है। मेरे अंतराय का उदय आने से ऐसा हुआ है। तूने यदि यथार्थ में देखा जाय, तो मेरा उपकार किया है। तेरे कारण ही मुझे इस शांति तथा आनंद प्रदाता व्रत लेने का शुभ अवसर मिला। व्रत में कष्ट नही होता, आत्मा को अपूर्व शांति मिलती है।"
यथार्थ मे आचार्य महाराज निसर्ग सिद्ध(जन्मजात) साधु रहे हैं। जिस तपस्या को देखकर लोग घबराते हैं, उससे उनके मन मे शांति और आत्मा को बल प्राप्त होता है। आचार्यश्री अपनी शक्ति को देखकर ही तप करते थे, जिससे संकलेश-भाव की प्राप्ति ना हो।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.