स्व दर्शन क्या है ?
आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि स्व दर्शन के बिना आत्मा का ध्यान संभव नहीं है, इसलिए सर्वप्रथम स्वदर्शन को जानना आवश्यक है। स्वदर्शन के विषय में वे कहते हैं कि जीवों का पदार्थ के भेद रहित सब पदार्थों का जो मुख्य ग्रहण है, वह ही स्व दर्शन है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
34. सयल-पयत्थहँ जं गहणु जीवहँ अग्गिमु होइ।
वत्थु-विसेस-विवज्जियउ तं णिय-दंसणु जोइ।।
अर्थ - जीवों का पदार्थ के भेद रहित सब पदार्थों का जो मुख्य ग्रहण (अधिगम) है, उसको (तू)
निज (स्व) दर्शन जान।
शब्दार्थ - सयल-पयत्थहँ - समस्त पदार्थों का, जं -जो, गहणु -ग्रहण, जीवहँ -जीवों का, अग्गिमु -मुख्य, होइ-है, वत्थु-विसेस-विवज्जियउ-पदार्थ के भेद रहित, तं -उसको, णिय-दंसणु-निज दर्शन, जोइ-समझ।
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