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रत्नत्रय मोक्षपद प्राप्ति का प्रथम सोपान


Sneh Jain

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आचार्य योगिन्दु यहाँ मोक्षपद अर्थात शाश्वत शान्तिपद प्राप्ति की सही राह बताते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति विशुद्ध रत्नत्रय से ही आत्मस्वरूप की प्राप्ति होना मानते हैं तथा मोक्षपद प्राप्ति के इच्छुक हैं वे ही अपनी आत्मा का ध्यान कर मोक्षपद प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार इस दोहे में योगिन्दुदेव ने मोक्षपद प्राप्ति का प्रथम सोपान रत्नत्रय को माना है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -

32.   जे रयण-त्तउ णिम्मलउ णाणिय अप्पु भणंति।

      ते आराहय सिव-पयहँ णिय अप्पा झायंति।।

अर्थ - जो ज्ञानी विशुद्ध रत्नत्रय को आत्मा बोलते हैं (और) मोक्षपद की आराधना करनेवाले हैं, वे 

     (ही) अपनी आत्मा का ध्यान करते हैं।

शब्दार्थ - जे - जो, रयण-त्तउ-रत्नत्रय को,  णिम्मलउ-निर्मल, णाणिय-ज्ञानी,  अप्पु-आत्मा, भणंति-बोलते हैं, ते- वे, आराहय-आराधना करनेवाले, सिव-पयहँ-मोक्षपद की, णिय-अपनी,  अप्पा- आत्मा का, झायंति-ध्यान करते हैं।

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