द्रव्यों की स्थिति
आचार्य योगिन्दु इन द्रव्यों की स्थिति के विषय में कहते हैं कि ये सभी द्रव्य लोकाकाश को धारण कर यहाँ संसार में एक में मिले हुए अपने-अपने गुणों में रहते हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
25. लोयागासु धरेवि जिय कहियइँ दव्वइँ जाइँ।
एक्कहिं मिलियइँ इत्थु जगि सगुणहि णिवसहि ताइँ।।
अर्थ - हे जीव! (ये) जो द्रव्य कहे गये हैं वे सब लोकाकाश को धारण कर यहाँ संसार में एक में मिले हुए निजी (आत्मीय)े गुणों में रहते हैं।
शब्दार्थ - लोयागासु -लोकाकाश को, धरेवि-धारणकर, जिय-हे जीव! कहियइँ -कहे गये हैं, दव्वइँ -द्रव्य, जाइँ-जो, एक्कहिं-एक में, मिलियइँ -मिले हुए, इत्थु-यहाँ, जगि-संसार में, सगुणहि ँ-निजि गुणों में, णिवसहि ँ-रहते हैं, ताइँ - वे सब।
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