द्रव्यों के प्रदेश का कथन
आचार्य योगीन्दु द्रव्यों के प्रदेशों के विषय में कहते हैं कि धर्म, अधर्म और जीव असंख्य प्रदेशी हैं, आकाश अनन्त प्रदेशी है तथा पुद्गल बहु प्रदेशी है। काल का कोई प्रदेश नहीं है। इसीलिए आचार्य कुन्दकुन्द ने पंचास्तिकाय में धर्म, अधर्म, जीव, आकाश और पुद्गल को सम्मिलित किया है, काल द्रव्य को नहीं किया। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
24. धम्माधम्मु वि एक्कु जिउ ए जि असंख्य-पदेस।
गयणु अणंत-पएस मुणि बहु-विह पुग्गल-देस।।
अर्थ - धर्म, अधर्म और एक जीव इन (तीनों) को ही तू असंख्य प्रदेश, आकाश को अनन्त प्रदेश और पुद्गल का प्रदेश बहुत प्रकार का जान।
शब्दार्थ - धम्माधम्मु- धर्म और अधर्म, वि -समुच्चय बोधक, एक्कु-एक, जिउ-जीव, ए -इनको, जि-ही, असंख्य-पदेस- असंख्य प्रदेश, गयणु आकाश को, अणंत-पएस- अनन्त प्रदेश, मुणि- जान, बहु-विह-बहुत प्रकार, पुग्गल-देस- पुद्गल का प्रदेश।
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