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द्रव्यों का गमन और आगमन से सम्बन्ध


Sneh Jain

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आचार्य योगीन्दु द्रव्यों के गमन और आगमन की क्रिया के सम्बन्ध में बताते हैं कि जीव पुद्गल आवागमन करते हैं। जीव द्रव्य का चारों गतियों में आवागमन होता है और पुद्गल द्रव्य का भी जीव द्रव्य के द्वारा इधर. उधर होना देखा जाता है। इन दो द्रव्यों को छोड़कर बाकी अन्य चारों धर्म, अधर्म, आकाश काल द्रव्य जीव पुद्गल द्रव्य की भाँति आवागमन से रहित है। देखिये इससे सम्बन्धित परमात्मप्रकाश का आगे का दोहा -

23.       दव्व चयारि वि इयर जिय गमणागमण-विहीण।

          जीउ वि पुग्गलु परिहरिवि पभणहि णाण-पवीण।।

अर्थ -   हे प्राणी! जीव और पुद्गल को छोड़कर  अन्य चारों ही द्रव्य (धर्म, अधर्म, आकाश, काल) जाने-आने से रहित हैं। ज्ञान में निपुण (ज्ञानी) (ऐसा) कहते हैं।

शब्दार्थ - दव्व- द्रव्य, चयारि-चारों, वि-ही, इयर-अन्य, जिय-हे जीव!, गमणागमण-विहीण-जाने-आने से रहित, जीउ-जीव, वि-और, पुग्गलु-पुद्गल को, परिहरिवि- छोड़कर, पभणहि -कहते हैं, णाण-पवीण- ज्ञान में निपुण।

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