आत्मा ही ज्ञान है
भट्टप्रभाकर के द्वारा आत्मा को जाननेवाले ज्ञान के विषय में पूछा जाने पर आगे योगीन्दु आचार्य कहते हैं कि आत्मा को ही ज्ञान जान। आत्मा स्वयं ज्ञानवान है वह अपने ज्ञान से स्वयं को जानती है। इसलिए तू आत्मा को ही ज्ञान समझ। इससे सम्बन्धित देखिये आगे का दोहा जिसमें इसको अच्छी तरह से स्पष्ट किया गया है।
105. अप्पा णाणु मुुणेहि तुहुँ जो जाणइ अप्पाणु ।
जीव-पएसहि ँ तित्तिडउ णाणे ँ गयण-पवाणु।।
अर्थ - तू आत्मा को ही ज्ञान जान, जो (ज्ञानरूप) आत्मा अपने को अपने ज्ञान से जानती है कि (अपने) आत्मा के प्रदेशों में (भी) उतना ही आकाश प्रमाण ज्ञान है।
शब्दार्थ - अप्पा-आत्मा को, णाणु-ज्ञान, मुुणेहि-जान, तुहुँ -तू, जो-जो, जाणइ-जानता है, अप्पाणु-अपने को, जीव-पएसहि ँ-जीव प्रदेशों में, तित्तिडउ-उतना ही, णाणे -ज्ञान से, गयण-पवाणु-आकाश प्रमाण।
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