लक्ष्मण
लक्ष्मण
प्रशंसा एक ऐसी चीज है जिससे बड़े-योगी भी नहीं बच पाते।
निन्दा की आँच जिसे जला भी नहीं सकती, प्रशंसा की छाँव उसे छार-छार कर देती है।
लक्ष्मण राजा दशरथ व उनकी रानी सुमित्रा के पुत्र तथा काव्य के नायक राम के छोटे भाई हंै। राम व लक्ष्मण के विषय में स्वयंभू कहते हैं - एक्कु पवणु अण्णेक्कु हुआसणु, एक पवन था, तो दूसरा आग। सुन्दर व आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लक्ष्मण के जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाएँ काव्य में इस प्रकार हैं-
सुन्दर व आकर्षक तथा कला प्रिय लक्ष्मण के व्यक्तित्व में इतना आकर्षण था कि राम के साथ लक्ष्मण के वनवास जाने पर समस्त जन लक्ष्मण को याद कर दुःखी होता था। लक्ष्मण के वनवास गमन की बात सुनकर राजा महीधर की पुत्री वनमाला अत्यन्त व्याकुल हो उठी। उसने लक्ष्मण की तलाश में अशोकवन में प्रवेश किया। लक्ष्मण का स्मरण व आक्रन्दन करती हुई उसने अपने प्राण विसर्जन करने हेतु कपड़े का फंदा बनाया। तभी वहाँ लक्ष्मण ने आकर उसे रोक लिया और उन दोनों का विवाह हुआ। कूबरनगर के राजा बालिखिल्य की पुत्री कल्याणमाला भयवश पुरुष वेश में कूबरनगर के राजा के रूप में रह रही थी। उसने सरोवर के किनारे लक्ष्मण को जल आलाड़ित करते हुए देखा। लक्ष्मण को देखकर उसे लगा जैसे कामदेव ही अवतरित हुआ हो। उसके सौन्दर्य से आकर्षित हो वह उससे मिलने के लिए बेचैन हो उठी। उसे अपने पास बुलवाया और उसे अपने आधे आसन पर बिठाया। तदनन्तर कल्याणमाला की बात सुनकर लक्ष्मण ने उसको रुद्रभूति को मारने का वचन दिया और उसके पिता बालिखिल्य को रुद्रभूति से मुक्त करवाया।वनवासपर्यन्त मुनि को आहार दिया जाने के बाद कुसुमांजलि के बरसी रत्नावली से कलाप्रिय लक्ष्मण ने उनको इकट्ठा कर एक रथ का निर्माण कर लिया।
लक्ष्मण का पूरा जीवन-काल राम के लिए समर्पित था। उनको राम से कुछ समय के लिए भी अलग नहीं देखा गया। उन्होंने राम के लिए अपना सब कुछ त्याग कर दिया। जिससे राम प्रेम करते थे लक्ष्मण का भी उस पर अनन्य प्रेम होता था। जो घटना राम के लिए अप्रिय थी उस पर लक्ष्मण भी भड़क उठते थे। राम से किसी भी कार्य की अनुमति मिलते ही वे एकाएक उसे शीघ्र पूरा कर दिखाते थे तथा उनके द्वारा किसी कार्य के लिए मना करने पर वे रुक भी जाते थे। पवन चलती है तो आग भड़क उठती है, पवन रुकती है तो आग भी थोड़ी शान्त हो जाती है। राम के प्रति इनका विरोध यदि कहीं देखा गया है तो मात्र सीता को लेकर। वहाँ भी आखिर में राम की बात सुन चुप हो गये। लक्ष्मण के राम व सीता के प्रति समर्पण से सम्बन्धित घटनाएँ इस प्रकार हैं -
जैसे ही वनगमन हेतु राम ने राज्य द्वार पार किया वैसे ही लक्ष्मण अपने मन में क्रुद्ध हो उठा और बोला, राम के जीवित रहने पर दूसरा राजा कौन हो सकता है? आज भरत को पकड़कर राम को अपने हाथ से राज्य दूँगा। तभी राम ने लक्ष्मण को अपने साथ चलने के लिए कहा तो लक्ष्मण बिल्कुल शान्त हो गये।
वज्रकर्ण व सिंहोदर में मित्रता होने पर उन दोनों ने लक्ष्मण के लिए 300 कन्याएँ दीं। तब लक्ष्मण ने कहा कि पहले मुझे दक्षिण देश जाकर राम के लिए रहने की व्यवस्था करनी है। बाद में पाणिग्रहण करूँगा। यह सुन वे कन्याएँ बहुत दुःखीहुईं। खरदूषण को युद्ध में धराशायी कर बीच में ही लक्ष्मण राम से मिलने पहुँच गया। वहाँ राम को सीता के शोक से परिपूर्ण देखकर लक्ष्मण ने विराधित से कहा- सीता का अपहरण कर लिया गया है। कहाँ खोजूँ, राम सीता के वियोग में मरते हैं और इनके मरने पर मैं मरता हूँ।
वशास्थल नगर में भयंकर उपसर्ग होने के विषय में सुनकर सीता काँप गई। तब लक्ष्मण ने उनको धीरज बँधाते हुए कहा, जब तक हम दोनों के हाथों में समुद्रावर्त और वज्रावर्त धनुष है तब तक हे माँ, तुम्हें किससे आशंका है? आप विहार करें। वन में सीता के लिए दूध लाने का काम भी लक्ष्मण ही करते थे। सीता पर प्रजा द्वारा लगाये गये कलंक को राम के मुख से सुनकर लक्ष्मण एकदम उबल पड़ा। उसने अपनी सूर्यहास तलवार निकालकर कहा- सीतादेवी के प्रति जो दुष्ट सन्देह रखता है वह मेरे सामने आकर खड़ा हो, उसका सिर मैं अपने हाथों से खोट लूँंगा। तब राम ने लक्ष्मण को पकड़कर समझाया, जिससे लक्ष्मण शांत हो गये।
क्षेमांजलि नगर में गोपालक ने लक्ष्मण को यह बताया कि राजा अरिदमन की पुत्री भटों का संहार करनेवाली है। वह शक्तियों को धारण करनेवाले पराक्रमी पुरुष को ही अपना पति स्वीकार करेगी। यह सुनकर पराक्रमी लक्ष्मण ने राजदरबार में पहुँचकर इस कार्य के लिए स्वयं को समर्थ बताया। तब अरिदमन के द्वारा किये प्रहार को लक्ष्मण ने रोक लिया। लक्ष्मण का पराक्रम सुन जितपद्मा ने झरोखे से उसको देखा और जैसे ही लक्ष्मण अरिदमन पर शक्ति छोड़ने को तैयार हुआ वैसे ही जितपद्मा ने आकर लक्ष्मण के गले में वरमाला डाल दी और पिता के जीवन की भीख माँगी। लक्ष्मण ने सिंहोदर को युद्ध में पराजित किया।
रावण ने लक्ष्मण को खरदूषण की सेना को अवरुद्ध करते हुए देख उसकेे पराक्रम की सराहना की है कि - मृगसमूह से तो यह अकेला सिंह ही अच्छा है। एक अकेला जो चैदह हजार को रोक लेता है। वह युद्ध के मैदान में मुझे भी मार देगा। देखो प्रहार करता हुआ कैसे प्रवेश करता है। धनुष, सर और संधान दिखाई नहीं देता केेवल महीतल पर गिरते हुए धड़ दिखाई पड़ते हैं। तब अकेले लक्ष्मण ने खर व दूषण को युद्ध में मार गिराया। जाम्बवन्त के यह कहा जाने पर कि जो कोटिशिला को अच्छी तरह से हिला देगा वही रावण का प्रतिद्वन्द्वी और विद्याधरों का स्वामी होगा, लक्ष्मण ने पूजा अर्चना के साथ मंगलोच्चारण कर उस शिला को अच्छी तरह चालित कर दिया।
वनवासपर्यन्त तीव्र प्यास लगने पर राम व सीता सहित लक्ष्मण किसी द्विज के घर से पानी पीकर बाहर निकल ही रहे थे कि बाहर से आयेे द्विज ने कुपित हो उनको अपशब्द कहे। उन शब्दों को सुनकर उग्र स्वभावी लक्ष्मण क्रुद्ध हो उठा और उसकोे उठाकर आकाश में घुमाकर धरती तल पर पटकने लगा। तभी राम ने उसे रोक लिया। सुग्रीव के द्वारा रावण के पराक्रम का कथन कर उसे जीतना कठिन बताया जाने पर लक्ष्मण कुपित हो उठा और बोला- अंग, अंगद, नील और आप सब अपनी भुजाओं को सहेजकर बैठे रहो, रावण के जीवन को नष्ट करनेवाला अकेला मैं लक्ष्मण ही पर्याप्त हूँ। रावण की शक्ति के आगे सीता की प्राप्ति की आशा छोड़ देने की बात सुनकर उग्र हुए लक्ष्मण ने कहा, जाओ मरो, यदि तुम में शक्ति नहीं है, मैं अकेला लक्ष्मण यह आशा पूरी करूँगा, कहाँ की विद्या और कहाँ की शक्ति, कल तुम उसका अन्त देखोगे। हे दशरथ नन्दन! मैंने प्रतिज्ञा की है, मैं अपने तीरों के समुद्र में उस दुष्ट को डुबोकर रहूँगा।
राम के द्वारा रावण के पास भेजे जानेवाले संधि प्रस्ताव को सुनकर यशके लोभी लक्ष्मण ने राम पर क्रोधित होते हुए कहा, ‘जिसकी भुजाएँ और यश इतने ठोस हों, फिर आप इतने दीन शब्दों का प्रयोग क्यों कर रहे हो? हे देव, आपकी इन ओजहीन बातों से मैं दूर हूँ, आप तो केवल धनुष हाथ में लीजिए और उस पर शर संधान कीजिए। लक्ष्मण का ओजपूर्ण कथन सुनकर राम भी भड़क उठे और उन्होंने संधि की बात छोड़ दी। राम और रावण की सेना के मध्य हुए युद्ध में रावण अपनी शक्ति को विभीषण पर छोड़ने ही वाला था कि यश के लोभी लक्ष्मण ने अपना रथ उन दोनों के बीच में लाकर खड़ा
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