Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
  • entries
    284
  • comments
    3
  • views
    15,740

कर्म की परिभाषा


Sneh Jain

815 views

बन्धुओं, जैसा कि आपको बताया जा चुका है कि आचार्य योगिन्दु का समय 6ठी शताब्दी है। मैं आपको इस ग्रंथ के बारे में विश्वास दिलाती हूँ कि जब आप इस ग्रंथ का मनोयोगपूर्वक अध्ययन कर लेंगे तब आप इस संसार के वैचारिक द्वन्द से आक्रान्त होने से आसानी से बच जायेंगे। आपका अपने कार्य के प्रति लिया गया निर्णय सही होगा। इससे आप अपने जीवन के आनन्द का मधुर रस पान कर सकेंगे। मैं आपको कर्म की परिभाषा से पूर्व इस ग्रंथ के विषय में पुनः बता दूं कि यह ग्रंथ मुख्यरूप से तीन भागों में विभक्त है। 1. त्रिविध आत्मा अधिकार 2. मोक्ष अधिकार 3. महा अधिकार। वैसे भी यदि हम देखें तो हमारे जीवन में हमारा सबसे महत्वपूर्ण सम्बन्ध भी इन तीन अधिकारों से ही है। प्रथम अधिकार आत्मा से सम्बन्धित है तो हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण आत्मा ही है। आत्मा के अभाव में हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।  दूसरा अधिकार मोक्ष अधिकार है। मोक्ष का अर्थ शान्ति है। तो हम सब बन्धनों से मुक्त शान्ति की प्रयास में ही निरन्तर रत हैं। बन्धन, गुलामी की जिन्दगी मनुष्य तो क्या पशु भी पसंद नहीं करता। तीसरा अधिकार महा अधिकार, जो साधुओं से सम्बन्धित है। आचार्य योगिन्दु स्वयं एक संन्यासी थे, अतः उन्होंने यह अधिकार अपने साधर्मी बंधुओं के लिए ही लिखा है। वैसे ही साधर्मी बन्धुओं से प्रेम हमारे भी जीवन का अभिन्न अंग है। मेरा मानना है कि यह ग्रंथ धीरे-धीरे आपके आनन्द को बढ़ायेगा।

आचार्य कर्म के विषय में कहते हैं कि जब उपादानरूप जीव विषय-कषायों में आसक्त होता है और उसका किसी निमित्त से सम्बन्ध जुड़ता है तब उसके स्वयं के विषय-कषायरूप राग में आसक्त होने के कारण किसी भी निमित्त के प्रयोजन से जो परमाणु चिपकते हैं वही कर्म है। विषय-कषाय के अभाव में परमाणु चिपकते नहीं है, जिससे कर्म बन्ध नहीं होता है। देखिये इससे सम्बन्धित अगला दोहा -

62.   विसय-कसायहि रंगियहँ ते अणुया लग्गंति

     जीव-पएसहँ मोहियहँ ते जिण कम्म भणंति।

अर्थ - विषय-कषायों से रंगे हुए मोहित जीवों के प्रदेशों के जो परमाण जुडते हैं, उनको जिनेन्द्रदेव कर्म कहते हैं।

शब्दार्थ - विसय-कसायहि - विषय-कषायों से, रंगियहँ - रंगे गये, ते - जो, अणुया - परमाणु, लग्गंति- जुड़ जाते हैं, जीव-पएसहँ - जीव प्रदेशों के, मोहियहँ - मोहित, ते - उनको, जिण - जिनेन्द्रदेव, कम्म - कर्म, भणंति - कहते हैं।

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...