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६८. विद्युच्चर मुनि की कथा

सब सुखों के देने वाले और संसार में सर्वोच्च गिने जाने वाले जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर शास्त्रों के अनुसार विद्युच्चर मुनि की कथा लिखी जाती है ॥१॥ मिथिलापुर के राजा वामरथ के राज्य में इनके समय कोतवाल के ओहदे पर एक यमदण्ड नाम का मनुष्य नियुक्त था। वहीं एक विद्युच्चर नाम का चोर रहता था । यह अपने चोरी के फन में बड़ा चलता हुआ था। सो यह क्या करता कि दिन में तो एक कोढ़ी के वेष में किसी सुनसान मन्दिर में रहता और ज्यों ही रात होती कि एक सुन्दर मनुष्य का वेष धारण कर खूब मजा - मौज मारता । यही ढंग

६७. अभयघोष मुनि की कथा

देवों द्वारा पूजा भक्ति किए गए जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर अभयघोष मुनिका चरित्र लिखा जाता है ॥१॥ अभयघोष काकन्दी के राजा थे उनकी रानी का नाम अभयमती था। दोनों में परस्पर बहुत प्यार था। एक दिन अभयघोष घूमने को जंगल में गए हुए थे। इस समय एक मल्लाह एक बहुत बड़े और जीवित कछुए के चारों पाँव बाँध कर उसे लकड़ी में लटकाये हुए लिए जा रहा था। पापी अभयघोष की उस पर नजर पड़ गई उन्होंने मूर्खता के वश हो अपनी तलवार से उसके चारों पाँवों को काट दिया। बड़े दुःख की बात है कि पापी लोग बेचारे ऐसे निर्दोष जीवों

६६. कार्तिकेय मुनि की कथा

संसार के सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थों को देखने जानने के लिए केवलज्ञान जिनका सर्वोत्तम नेत्र है और जो पवित्रता की प्रतिमा और सब सुखों के दाता हैं, उन जिन भगवान् को नमस्कार कर कार्तिकेय मुनि की कथा लिखी जाती है ॥१॥ कार्तिकपुर के राजा अग्निदत्त की रानी वीरवती के कृतिका नाम की एक लड़की थी। एक बार अठाई के दिनों में उसने आठ दिन के उपवास किए। अन्त के दिन वह भगवान् की पूजा कर शेषा को- भगवान् के लिए चढ़ाई फूलमाला को लाई । उसे उसने अपने पिता को दिया। उस समय उसकी दिव्य रूपराशि को देखकर उसके पिता अग्निद

६५. वृषभसेन की कथा

जिन्हें सारा संसार बड़े आनन्द के साथ सिर झुकाता है, उन जिन भगवान् को नमस्कार कर वृषभसेन का चरित लिखा जाता है ॥१॥ उज्जैन के राजा प्रद्योत एक दिन उन्मत्त हाथी पर बैठकर हाथी पकड़ने के लिए स्वयं किसी एक घने जंगल में गए। हाथी इन्हें बड़ी दूर ले भागा और आगे-आगे भागता ही चला जाता था। इन्होंने उसके ठहराने की बड़ी कोशिश की, पर उसमें वे सफल नहीं हुए । भाग्य से हाथी एक झाड़ के नीचे होकर जा रहा था कि इन्हें सुबुद्धि सूझ गई वे उसकी टहनी पकड़ कर लटक गए और फिर धीरे-धीरे नीचे उतर आए। यहाँ से चलकर वे खेट ना

६४. श्रीदत्त मुनि की कथा

केवलज्ञानरूपी सर्वोच्च लक्ष्मी के जो स्वामी हैं, ऐसे जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर श्रीदत्त मुनि की कथा लिखी जाती हैं, जिन्होंने देवों द्वारा दिये हुए कष्ट को बड़ी शान्ति से सहा ॥१॥ श्रीदत्त इलावर्द्धनपुरी के राजा जितशत्रु की रानी इला के पुत्र थे । अयोध्या के राजा अंशुमान की राजकुमारी अंशुमती से इनका ब्याह हुआ था । अंशुमती ने एक तोते को पाल रखा था। जब ये पति- पत्नी विनोद के लिए चौपड़ वगैरह खेलते तब तोता कौन कितनी बार जीता, इसके लिए अपने पैर के नख से रेखा खींच दिया करता था। पर इसमें यह दुष्

६३. धर्मघोष मुनि की कथा

सत्य धर्म का उपदेश करने वाले अतएव सारे संसार के स्वामी जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर श्रीधर्मघोष मुनि की कथा लिखी जाती है ॥१॥ एक महीना के उपवास से धर्ममूर्ति श्रीधर्मघोष मुनि एक दिन चम्पापुरी के किसी मुहल्ले में पारणा कर तपोवन की ओर लौट रहे थे। रास्ता भूल जाने से उन्हें बड़ी दूर तक हरी-हरी घास पर चलना पड़ा। चलने में अधिक परिश्रम होने से थकावट के मारे उन्हें प्यास लग आई, वे आकर गंगा के किनारे एक छायादार वृक्ष के नीचे बैठे गए। उन्हें प्यास से कुछ व्याकुल से देखकर गंगा देवी पवित्र जल का भरा ए

६२. बत्तीस सेठ पुत्रों की कथा

लोक और अलोक के प्रकाश करने वाले- उन्हें देख जानकर उनके स्वरूप को समझाने वाले श्रीसर्वज्ञ भगवान् को नमस्कार कर बत्तीस सेठ पुत्रों की कथा लिखी जाती है ॥१॥ कौशाम्बी में बत्तीस सेठ थे । उनके नाम थे इन्द्रदत्त, जिनदत्त, सागरदत्त आदि । इनके पुत्र भी बत्तीस ही थे। उनके नाम समुद्रदत्त, वसुमित्र, नागदत्त, जिनदास आदि थे। ये सब ही धर्मात्मा थे, जिनभगवान् के सच्चे भक्त थे, विद्वान् थे, गुणवान् थे और सम्यक्त्वरूपी रत्न से भूषित थे। इन सबकी परस्पर में बड़ी मित्रता थी । वह एक उनके पुण्य का उदय कहना चाहिए

६१. भद्रबाहु मुनिराज की कथा

संसार का कल्याण करने वाले और देवों द्वारा नमस्कार किए गए श्रीजिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर पंचम श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहु मुनिराज की कथा लिखी जाती है, जो कथा सबका हित करने वाली है ॥१॥ पुण्ड्रवर्द्धन देश के कोटीपुर नामक नगर के राजा पद्मरथ के समय में वहाँ सोमशर्मा नाम का एक पुरोहित ब्राह्मण था । इसकी स्त्री का नाम श्रीदेवी था । कथा - नायक भद्रबाहु इसी के लड़के थे। भद्रबाहु बचपन से ही शान्त और गम्भीर प्रकृति के थे । उनके भव्य चेहरे को देखने से यह झट : से कल्पना होने लगती थी कि ये आगे चलकर कोई ब

६०. पणिक मुनि की कथा

सुख के देने वाले और सत्पुरुषों से पूजा किए गए जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर श्री पणिक नाम के मुनि की कथा लिखी जाती है, जो सबका हित करने वाली है ॥१॥ पणीश्वर नामक शहर के राजा प्रजापाल के समय वहाँ सागरदत्त नाम का एक सेठ हो चुका है। उसकी स्त्री का नाम पणिका था । उसका एक लड़का था । उसका नाम पणिक था । पणिक सरल, शान्त और पवित्र हृदय का था। पाप कभी उसे छू भी न गया था। सदा अच्छे रास्ते पर चलना उसका कर्तव्य था। एक दिन वह भगवान् के समवसरण में गया, जो कि रत्नों के तोरणों से बड़ी ही सुन्दरता धारण किए ह

५९. गजकुमार मुनि की कथा

जिन्होंने अपने गुणों से संसार में प्रसिद्ध हुए और सब कामों को करके सिद्धि, कृत्यकृत्यता लाभ की है, उन जिन भगवान् को नमस्कार कर गजकुमार मुनि की कथा लिखी जाती है ॥१॥ नेमिनाथ भगवान् के जन्म से पवित्र हुई प्रसिद्ध द्वारका के अर्धचक्री वासुदेव की रानी गन्धर्वसेना से गजकुमार का जन्म हुआ था । गजकुमार बड़ा वीर था । उसके प्रताप को सुनकर ही शत्रुओं की विस्तृत मानरूपी बेल भस्म हो जाती थी ॥२-३॥ पोदनपुर के राजा अपराजित ने तब बड़ा सिर उठा रखा था। वासुदेव ने उसे अपने काबू में लाने के लिए अनेक यत्न कि

५८. सुकौशल मुनि की कथा

जगत्पवित्र जिनेन्द्र भगवान् जिनवाणी और गुरुओं को नमस्कार कर सुकौशल मुनि की कथा लिखी जाती है ॥१॥ अयोध्या में प्रजापाल राजा के समय में एक सिद्धार्थ नाम के सेठ हुए हैं। उनके बत्तीस अच्छी- अच्छी सुन्दर स्त्रियाँ थीं। पर खोटे भाग्य से उनकी कोई सन्तान न थी । स्त्री कितनी भी सुन्दर हो, गुणवती हो, पर बिना सन्तान के उसकी शोभा नहीं होती। जैसे बिना फल-फूल के लताओं की शोभा नहीं होती। इन स्त्रियों में जो सेठ की खास प्राणप्रिया थी, जिस पर कि सेठ महाशय का अत्यन्त प्रेम था, वह पुत्र प्राप्ति के लिए सदा कुद

५७. सुकुमाल मुनि की कथा

जिनके नाम मात्र का ध्यान करने से हर प्रकार की धन-सम्पत्ति प्राप्त हो सकती है, उन परम पवित्र जिन भगवान् को नमस्कार कर सुकुमाल मुनि की कथा लिखी जाती है ॥१॥ अतिबल कौशाम्बी के जब राजा थे, तब का यह आख्यान है । यहाँ एक सोमशर्मा पुरोहित रहता था, इसकी स्त्री का नाम काश्यपी था । इसके अग्निभूत और वायुभूति नामक दो लड़के हुए। माँ-बाप के अधिक लाड़ले होने से वे कुछ भी पढ़-लिख न सके और सच है पुण्य के बिना किसी को विद्या आती भी तो नहीं । काल की विचित्र गति से सोमशर्मा की असमय में ही मौत हो गई ये दोनों भाई

५६. परशुराम की कथा

संसार-समुद्र से पार करने वाले जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर परशुराम का चरित्र लिखा जाता है जिसे सुनकर आश्चर्य होता है ॥१॥ अयोध्या का राजा कार्त्तवीर्य अत्यन्त मूर्ख था। उसकी रानी का नाम पद्मावती था। अयोध्या के जंगल में यमदग्नि नाम के एक तपस्वी का आश्रम था। इस तपस्वी की स्त्री का नाम रेणुका था। इसके दो लड़के थे। इसमें एक का नाम श्वेतराम था और दूसरे का महेन्द्रराम। एक दिन की बात है कि रेणुका के भाई वरदत्त मुनि उस ओर आ निकले। वे एक वृक्ष के नीचे ठहरे। उन्हें देखकर रेणुका बड़े प्रेम से उनसे मि

५५. मृगध्वज की कथा

सारे संसार द्वारा भक्ति सहित पूजा किए गए जिन भगवान् को नमस्कार कर प्राचीनाचार्यों के कहे अनुसार मृगध्वज राजकुमार की कथा लिखी जाती है ॥१॥ सीमन्धर अयोध्या के राजा थे। उनकी रानी का नाम जिनसेना था। इनके एक मृगध्वज नाम का पुत्र था। वह मांस का बड़ा लोलुपी था । उसे बिना मांस खाये एक दिन भी चैन न पड़ता था। यहाँ एक राजकीय भैंसा था । वह बुलाने से पास चला आता, लौट जाने को कहने से चला जाता और लोगों के पाँवों में लोटने लगता । एक दिन वह भैंसा एक तालाब में क्रीड़ा कर रहा था । इतने में राजकुमार मृगध्वज, मं

५४. सगर चक्रवर्ती की कथा

देवो द्वारा पूजा किए गए जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर दूसरे चक्रवर्ती सगर का चरित लिखा जाता है ॥१॥ जम्बूद्वीप के प्रसिद्ध और सुन्दर विदेह क्षेत्र की पूरब दिशा में सीता नदी के पश्चिम की ओर वत्सकावती नाम का एक देश है । वत्सकावती की बहुत पुरानी राजधानी पृथ्वीनगर के राजा का नाम जयसेन था। जयसेन की रानी जयसेना थी । इसके दो लड़के हुए। इनके नाम थे रतिषेण और धृतिषेण। दोनों भाई बड़े सुन्दर और गुणवान् थे । काल की कराल गति से रतिषेण अचानक मर गया। जयसेन को इसके मरने का बड़ा दुःख हुआ और इसी दुःख के मारे

५३. शराब पीने वालों की कथा

सब सुखों के देने वाले सर्वज्ञ भगवान् को नमस्कार कर शराब पीकर नुकसान उठाने वाले एक ब्राह्मण की कथा लिखी जाती है । वह इसलिए कि इसे पढ़कर सर्व साधारण लाभ उठावें ॥१॥ वेद और वेदांगों का अच्छा विद्वान् एकपात नाम का एक संन्यासी एक चक्रपुर से चलकर गंगा नदी की यात्रार्थ जा रहा था। रास्ते में जाता हुआ वह दैवयोग से विन्ध्याटवी में पहुँच गया। यहाँ जवानी से मस्त हुए कुछ चाण्डाल लोग दारु पी-पीकर एक अपनी जाति की स्त्री के साथ हँसी मजाक करते हुए नाचकूद रहे थे, गा रहे थे और अनेक प्रकार की कुचेष्टाएँ में मस्

५२. द्वीपायन मुनि की कथा

संसार के स्वामी और अनन्त सुखों के देने वाले श्रीजिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर द्वीपायन मुनि का चरित लिखा जाता है, जैसा पूर्वाचार्यों ने उसे लिखा है ॥१॥ सोरठदेश में द्वारका प्रसिद्ध नगरी है। नेमिनाथ भगवान् का जन्म यहीं हुआ है। इससे यह बड़ी पवित्र समझी जाती है। जिस समय की यह कथा लिखी जाती है । उस समय द्वारका का राज्य नवमें बलभद्र और वासुदेव करते थे । एक दिन ये दोनों राज- राजेश्वर गिरनार पर्वत पर नेमिनाथ भगवान् की पूजा-वन्दना करने को गए । भगवान् की इन्होंने भक्तिपूर्वक पूजा की और उनका उपदेश स

५१. नागदत्ता की कथा

देवों, विद्याधरों, चक्रवर्तियों और राजाओं, महाराजाओं द्वारा पूजा किए गए भगवान् के चरणों को नमस्कार कर नागदत्ता की कथा लिखी जाती है ॥१॥ आभीर देश नासक्य नगर में सागरदत्त नाम का एक सेठ रहता था । उसकी स्त्री का नाम नागदत्त था। इसके एक लड़का और एक लड़की थी ॥२॥ दोनों के नाम थे श्रीकुमार और श्रीषेणा । नागदत्ता का चाल-चलन अच्छा न था। अपनी गायों को चराने वाले नन्द नाम के ग्वाल के साथ उसकी आशनाई थी । नागदत्ता ने उसे एक दिन कुछ सिखा-सुझा दिया। सो वह बीमारी का बहाना बनाकर गायें चराने को नहीं आया ।

५०. भीमराज की कथा

केवलज्ञानरूपी नेत्रों की अपूर्व शोभा को धारण किए हुए श्रीजिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर भीमराज की कथा लिखी जाती है, जिसे सुनकर सत्पुरुषों को इस दुःखमय संसार से वैराग्य होगा ॥१॥ वद्यापी कांपिल्य नगर में भीम नाम का एक राजा हो गया है। वह दुर्बुद्धि बड़ा पापी था। उसकी रानी का नाम सोमश्री था। इसके भीमदास नाम का एक लड़का था । भीम ने कुल - क्रम के अनुसार नन्दीश्वर पर्व में मुनादी पिटवाई कि कोई इस पर्व में जीवहिंसा न करें । राजा ने मुनादी तो पिटवा दी, पर स्वयं महा लम्पटी था। मांस खाये बिना उसे एक द

 ४९. गन्धर्वसेना की कथा

सब सुखों के देने वाले जिनभगवान् के चरणों को नमस्कार कर मूर्खिणी गन्धर्वसेना का चरित लिखा जाता है। गन्धर्वसेना भी एक विषय की अत्यासक्ति से मौत के पंजे में फँसी थी ॥१॥ पाटलिपुत्र (पटना) के राजा गन्धर्वदत्त की रानी गन्धर्वदत्त के गन्धर्वसेना नाम की एक कन्या थी। गन्धर्वसेना गानविद्या की बड़ी जानकार थी और इसीलिए उसने प्रतिज्ञा कर रक्खी थी कि जो मुझे गाने में जीत लेगा “वही मेरा स्वामी होगा, उसी की मैं अंकशायिनी बनूँगी।” गन्धर्वसेना की खूबसूरती की मनोहारी सुगन्ध की लालसा से अनेक क्षत्रियकुमार भौंर

४८. गन्धमित्र की कथा

अनन्त गुण-विराजमान और संसार का हित करने वाले जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर गन्धमित्र राजा की कथा लिखी जाती है, जो घ्राणेन्द्रिय के विषय में फँसकर अपनी जान गँवा बैठा है ॥१॥ अयोध्या के राजा विजय सेन और रानी विजयवती के दो पुत्र थे । इनके नाम थे जयसेन और गन्धमित्र। इनमें गन्धमित्र बड़ा लम्पटी था । भौरे की तरह नाना प्रकार के फूलों के सूँघने में वह सदा मस्त रहता था ॥२-३॥ उनके पिता विजयसेन एक दिन कोई कारण देखकर संसार में विरक्त हो गए। इन्होंने अपने बड़े लड़के जयसेन को राज्य देकर और गन्धमित्र

४७. मरीचि की कथा

सुखरूपी धान को हरा-भरा करने के लिए जो मेघ समान हैं, ऐसे जिनभगवान् के चरणों को नमस्कार कर भरत-पुत्र मरीचि की कथा लिखी जाती है, जैसी कि वह और शास्त्रों में लिखी है ॥१॥ अयोध्या में रहने वाले सम्राट् भारतेश्वर भरत के मरीचि नाम का पुत्र हुआ। मरीचि भव्य था और सरल मन था। जब आदिनाथ भगवान्, जो कि इन्द्र, धरणेन्द्र, विद्याधर, चक्रवर्ती आदि सभी महापुरुषों द्वारा सदा पूजा किए जाते थे, संसार छोड़कर योगी हुए तब उनके साथ कोई चार हजार राजा और भी साधु हो गए। इस कथा का नायक मरीचि भी इन साधुओं में था ॥२-३॥

४६. पुष्पदत्ता की कथा

अनन्त सुख के देने वाले और तीनों जगत् के स्वामी श्रीजनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर माया का नाश करने के लिए मायाविनी पुष्पदत्ता की कथा लिखी जाती है ॥१॥ प्राचीन समय से प्रसिद्ध अजितावर्त नगर के राजा पुष्पचूल की रानी का नाम पुष्पदत्ता था। राजसुख भोगते हुए पुष्पचूल ने एक दिन अमरगुरु मुनि के पास जिनधर्म का स्वरूप सुना, जो धर्म स्वर्ग और मोक्ष के सुख की प्राप्ति का कारण है। धर्मोपदेश सुनकर पुष्पचूल को संसार, शरीर, भोगादिकों से बड़ा वैराग्य हुआ । वे दीक्षा लेकर मुनि हो गए। उनकी रानी पुष्पदत्ता ने भी
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