Jump to content
JainSamaj.World
  • entries
    70
  • comments
    0
  • views
    7,154

About this blog

पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी का जैन संस्कृति के संवर्धन में बहुत अधिक महत्व है। ऐसे उपकारी पुरुष के जीवन को हम सभी को अवश्य ही जानना चाहिए।

Entries in this blog

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३९

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,       अद्भुत भावाभिव्यक्ति पूज्य वर्णीजी की श्री वीर प्रभु के चरणों में।       मैं पूर्ण विश्वास के साथ कर सकता हूँ स्वाध्याय की रुचि रखने वाला हर एक श्रावक जो प्रस्तुत भावों को ध्यानपूर्वक पढ़ता है वह अद्भुत अभिव्यक्ति कहे बिना रहेगा ही नहीं।        आत्मकथा प्रस्तुती का यह प्रारंभिक चरण ही है इतने में ही हम पूज्य वर्णीजी के भावों की गहराई से उनका परिचय पाने लगे हैं।       उनकी आत्मकथा ऐसे ही तत्वपरक उत्कृष्ट भावों से भरी पढ़ी है। निश्चित ही वर्णीजी की

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३८

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,       पूज्य वर्णीजी की श्री कुण्डलपुरजी की वंदना के समय वीर प्रभु के सम्मुख प्रार्थना के उल्लेख की प्रस्तुती चल रहीं है।      आप देखेंगे कि वर्णीजी की प्रस्तुत प्रार्थना में कितने सरल तरीके से जिनेन्द्र प्रभु के दर्शन का विज्ञान प्रस्तुत हो रहा है। वर्णीजी के भावों व तत्व चिंतन को पढ़कर आपको लगेगा जैसे आपके अतःकरण की बहुत सारी जटिलताएँ समाप्त होती जा रही हैं। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?           *"रेशन्दीगिरि व कुण्डलपुर"*          

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३७

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        आज की प्रस्तुती में पूज्य वर्णीजी के प्रारंभिक समय में श्री कुण्डलपुर सिद्ध क्षेत्र में वंदना के समय भावों का उल्लेख है।       एक भव्यात्मा के विशुद्ध भाव अवश्य ही हम सभी के जीवन को भी कल्याण की दिशा बतलाने वाले हैं यदि आप इनको गंभीरता पूर्वक पढ़ते हैं।        पूज्य वर्णीजी ने यहा भली प्रकार स्पष्ट किया है कि भगवान वीतरागी हैं वह किसी को कुछ नहीं देते। वीरप्रभु के श्री चरणों में उनकी विनती जिनेन्द्र भगवान के दर्शन का महत्व भी स्पष्ट करती है।    

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३६

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        रुचिवान पाठक यह विचार कर रहे होंगे कि गणेश प्रसाद ने नैनागिरि से श्री कुण्डलपुर जाते समय रास्ते में जहाँ रात्रि विश्राम किया था वहाँ लोगों के भोजन के आग्रह के निवेदन में क्या किया। आज आप वह जानेगें।        श्री कुण्डलपुर जी की वंदना तो अधिकांश पाठकों ने की होगी। लेकिन वर्णी जी का वंदना संबंधी अनुभूति परक वर्णन का यह उल्लेख आपकी वंदना की स्मृति को ताजा करेगा ही साथ ही उस समय वर्णीजी द्वारा की गई आनन्दनुभीति का भी अनुभव करायेगा।           कभी कभी प्रस

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३५

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        मैं जब पूज्य वर्णीजी की आत्मकथा को पढ़ता हूँ। ह्रदय भीग जाता है उनके जीवन को जानकर।         यदि आप भी पूज्य वर्णीजी के जीवन चरित्र को रुचि पढ़ रहे हैं तो आपका अंतःकरण भी एक महापुरुष के जीवन को नजदीक से स्पर्श करके अद्भुत आनंद के अनुभव से अछूता नहीं रहेगे।         आत्मकथा में आज के अंश से ज्ञात होता है कि भले ही उनके पास साधन नहीं थे लेकिन गणेश प्रसाद आत्मसाधना के लिए कितने व्याकुल थे।        रेशन्दीगिरि अर्थात सिद्ध क्षेत्र नैनागिरि वंदना के साथ

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३४

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,         आत्मकथा की आज की प्रस्तुती में पूज्य वर्णीजी द्वारा रेशन्दीगिरी सिद्ध क्षेत्र की वंदना के समय अपनी अनुभूति का वर्णन है।         रुचिवान पाठक अवश्य ही वर्णीजी की अनुभूति के वर्णन को पढ़कर अपने अंदर भी आनंदानुभूति कर रहे होंगे। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?           *"रेशन्दीगिरि व कुण्डलपुर"*                      *क्रमांक - ३४*            पूज्य वर्णी जी अपनी आत्मकथा में रेशन्दीगिरी तीर्थ की वंदना के समय अपने अनुभूति को

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३३

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           जिनधर्म में अनुरक्त अंतःकरण वाले गणेश प्रसाद अपनी माँ व पत्नी के पास वापिस तो आ गए लेकिन उनका मन धर्म-ध्यान की क्रियाओं की ओर ही आकर्षित था।         पिछले प्रसंग से स्पष्ट होता है कि पूज्य वर्णी जी की स्थिति बहुत दीनता पूर्ण थी।      उनकी आत्मा का धर्म-ध्यान के प्रति आकर्षण ही उनकी तीर्थवंदना आदि को प्रेरित कर रहा था जबकि गणेश प्रसाद को स्वयं ही मालूम नहीं था कि तीर्थवंदना आदि क्रियाओं का उनका उद्देश्य क्या है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद व

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सेठ लक्ष्मीचंद जी - ३२

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?              *"सेठ लक्ष्मीचंद जी"*                     क्रमांक - ३२                उन्होंने मुझसे कहा- 'आपका शुभागमन कैसे हुआ?' मैंने कहा- 'क्या कहूँ? मेरी दशा अत्यंत करुणामयी है। उसका दिग्दर्शन कराने से आपके चित्त में खिन्नता ही बढ़ेगी।       प्राणियों ने जो अर्जन किया है उसका फल कौन भोगे? मेरी कथा सुनने की इच्छा छोड़ दीजिए। कुछ जैनधर्म का वर्णन कीजिए, जिससे शांति का लाभ हो।'         आपने एक घण्टा आत्मधर्म का समीचीन रीति से विवेचन कर मे

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सेठ लक्ष्मीचंद जी - ३१

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,           गणेश प्रसाद ने जिनधर्म पर आस्था के आधार पर अपनी माँ तथा पत्नी के साथ रहना तभी उचित समझा था जब वह लोग भी अपना आचरण जिनधर्म के अनुसार रखें। उन्होंने अपनी माँ को इस हेतु पत्र भी लिखा था।          आज के प्रस्तुती में उनका अपनी माँ के पास आने का उल्लेख है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?              *"सेठ लक्ष्मीचंद जी"*                     क्रमांक - ३१              मुझे आया हुआ देख माँ बड़ी प्रसन्न हुई। बोली- 'बेटा ! आ गये?' मैंने कहा

Abhishek Jain

Abhishek Jain

खुरई में तीन दिन - ३०

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,           आत्मकथा की आज की प्रस्तुती से ज्ञात होगा कि वर्णी जी ने विद्धवान के अनुचित कथन के प्रतिउत्तर में ज्ञानार्जन की प्रतिज्ञा अवश्य की लेकिन उनके पास ज्ञानार्जन हेतु कोई साधन नहीं था।         पूज्य वर्णीजी की आत्मकथा को जैसे जैसे हम पढ़ते जाएँगे वैसे वैसे ज्ञात होता रहेगा कि कैसी कठिन परिस्थितयों में आगे बढ़ते हुए उन्होंने ज्ञानार्जन किया और अन्य लोगों को भी ज्ञानार्जन का मार्ग प्रशस्त किया। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?              *"खुरई में

Abhishek Jain

Abhishek Jain

खुरई में तीन दिन - २९

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,        आज की प्रस्तुती का यह प्रसंग वर्णी जी के जीवन का बड़ा ही मार्मिक प्रसंग है। कल की प्रस्तुती में हमने देखा विद्धवान ने गणेश प्रसाद से कहा कि अच्छे खान पान के लोभ में लोग जैन धर्म को धारण करते हैं।       वर्णी जी ने उन विद्धवान की अनुचित बातों के उत्तर में जो कहा उससे उनके अंदर, विद्धवान के कथन के कारण उत्पन्न हुई अंतर्वेदना स्पष्ट होती है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?              *"खुरई में तीन दिन"*                     क्रमांक - २९

Abhishek Jain

Abhishek Jain

खुरई में तीन दिन - २८

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,        जैनधर्म की महान प्रभावना करने वाले पूज्य वर्णी जी से उनके प्रारंभिक समय में जब वह अपनी ज्ञान लिप्सा के आधार पर आत्मकल्याण हेतु जैनधर्म के मर्म को जानने हेतु पुरुषार्थ शील थे,       विद्धवान ने गणेश प्रसाद से कहा- *मनुष्य जैनधर्म को कुछ समझते तो है नहीं, केवल खानपान के लोभ में जैन बन जाते हैं।*      आत्मकथा का यह प्रसंग वर्णी को जिनागम के ज्ञान प्राप्ति हेतु उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण बिंदु था।     विद्धवान के इस तरह के व्यवहार से ही वर्णी जी संकल्

Abhishek Jain

Abhishek Jain

खुरई में तीन दिन - २७

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,           अजैन कुल में जन्म होने बाद भी जिनधर्म से ही अपना कल्याण हो सकता है यह भावना रखकर आगे बढ़ने वाले गणेश प्रसाद का वर्णन उनकी ही आत्मकथा के अनुसार चल रहा है।          आज की प्रस्तुती में उनका खुरई जाने तथा वहाँ के जिनालय में जिनबिम्बों  का वर्णीजी द्वारा किए गए गुणावाद का आनंदप्रद वर्णन है।        ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                *"खुरई में तीन दिन"*                     क्रमांक - २७              तीन या चार दिन में मैं खुर

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सुरुपचन्द बनपुरिया और खुरई यात्रा - २६

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,            अपना कल्याण जिनधर्म से ही संभव है ऐसा अंतरंग श्रद्धान रखने वाले श्री गणेश प्रसाद,  जिनधर्म के मर्म को जानने की प्रवल इच्छा अपने अंदर रखकर, उसे पाने के लिए उनके सतत प्रयत्न का अवलोकन आत्मकथा के इन अंशो से होता है।        यहाँ जैनधर्म के अच्छे विद्धवान श्री निशोर वैद्य के  गणेश प्रसाद को महत्वपूर्ण उदभोदन का भी उल्लेख है।  ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी? *"सुरुपचंद्रजी बनपुरिया और खुरई यात्रा"*                     क्रमांक - २६    

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सुरुपचन्द बनपुरिया और खुरई यात्रा - २५

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,            आत्मकथा के प्रस्तुत उल्लेख के माध्यम से हम पूज्य वर्णीजी की ज्ञानपिपासा शांत होने हेतु उनके उस मार्ग पर आरोहण के क्रम को जान रहे हैं।       निश्चित ही रुचिवान पाठक रोचकता पूर्वक वर्णीजी के ज्ञानाभ्यास प्राप्ति के क्रम को जान रहे होंगे। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी? *"सुरुपचंद्रजी बनपुरिया और खुरई यात्रा"*                     क्रमांक - २५             स्वरूपचंद जी बनपुरया के यहाँ प्रतिवर्ष श्री जिनेन्द्र की जलयात्रा होती थी। इनके

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सुरुपचन्द बनपुरिया और खुरई यात्रा - २४

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,        जो पाठक बुंदेलखंड के हैं वह, वहाँ के श्रावकों के भावों से परिचित हैं। जो पाठक अन्य क्षेत्रों से हैं उन्होंने अवश्य ही बुंदेलखंड की अनेक विशेषताओं के बारे में सुना होगा।वह वर्णी की आत्मकथा से वह अवश्य ही बुंदेलखंड की अनेक विशेषताओं से परिचित होगें।        आत्मकथा की प्रस्तुती के आज के अंश से ज्ञात होता है कि बुनदेलखंड़ में श्रावक मंद कषायी थी, व्रत उपवास करते है। आहार में भी शुध्दता थी। कमी थी तो केवल अध्यापन कराने वाले गुरु की। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्र

Abhishek Jain

Abhishek Jain

जयपुर की असफल यात्रा - २३

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,         जयपुर यात्रा असफल होने के बाद गणेश प्रसाद वापिस बाईजी के पास नहीं गए।        जयपुर जाने के पूर्व बाईजी ने कहा था जाने के लिए कुछ समय और रुक जाओ। साथ ही यह भी कहा था कि तुम भोले हो संभल कर रहना नहीं तो कोई तुम्हारा सारा सामान चोरी हो जाए। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?         *"जयपुर की असफल यात्रा"*                     क्रमांक - २३                 यहाँ से सिमरा नौ मील दूर था, परंतु लज्जावश वहाँ न जाकर यहीं पर रहने लगा। और यहीं एक

Abhishek Jain

Abhishek Jain

जयपुर की असफल यात्रा - २२

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,        ज्ञानार्जन की तीव्र लालसा रखने वाले गणेश प्रसाद निकले तो ज्ञान प्राप्ति हेतु जयपुर के लिए थे लेकिन समान चोरी होने के कारण वापिस लौटना पड़ा।      भोजन की कोई व्यवस्था नहीं। अत्यंत भूखा होने पर बर्तनों के अभाव में भी पथ्थर पर पेड़ के पत्तों में भोजन बना अपनी भूख को शांत किया। और आगे भी कुछ समय तक यह क्रम चला।       महापुरुषों का जीवन जीवन सामान्य नहीं होता, उनके सम्मुख परिस्थितियाँ असामान्य होती हैं लेकिन वह धर्म के प्रति उनकी असामान्य आस्था के आधार पर आगे

Abhishek Jain

Abhishek Jain

जयपुर की असफल यात्रा - २१

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,        कल वर्णीजी के जयपुर यात्रा का ग्वालियर में सामान चोरी होने के कारण असफलता का उल्लेख प्रारम्भ हुआ। आज की प्रस्तुती में देखेंगे कि वर्णीजी ने उस समय कैसी-२ परिस्थितियों का सामना किया। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?       *"जयपुर की असफल यात्रा"*                        क्रमांक - २१                  शाम की भूख ने सताया, अतः बाजार से एक पैसे के चने और एक छदाम का नमक लेकर डेरे मैं आया और आनंद से चने चबाकर सायंकाल जिन भगवान के दर्शन किये तथा अप

Abhishek Jain

Abhishek Jain

जयपुर की असफल यात्रा - २०

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,           आत्मकथा में आज की प्रस्तुती से आगे आप वर्णी जी के जीवन में धर्ममार्ग में ज्ञानार्जन के बीच आई अनेक कठिनाइयों का उल्लेख प्राप्त करेंगे।       वर्णीजी के जीवन के यह प्रसंग हम पाठको के अंतःकरण को छूने वाले हैं। इन सब प्रसंगों से विदित होता है कि वर्तमान में सर्वविदित महापुरुषों के जीवन सरल नहीं थे। उनकी लक्ष्य के प्रति दृढ़ता ने ही उनको लोक में सर्वविदित कर दिया।           ज्ञानाभ्यास की प्रबल चाह रखने वाले पूज्य वर्णीजी अपने प्रारंभिक समय में जयपुर जाक

Abhishek Jain

Abhishek Jain

धर्ममाता श्री चिरोज़ा बाई जी -१९

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,          जो मनुष्य अपनी कमियों को ईमानदारी से अनुभव करता है वह निश्चत ही उन कमियों को दूर करने में सक्षम होता हैं, संयम के संबंध में वर्णीजी के जीवन में यह बात आपको यहाँ और अनेकों जगह देखने मिलेगी।         आजकी प्रस्तुती में हम देखेंगे बाई जी का गणेशप्रसाद को धर्म के संबंध में उदभोदन, यह हम सभी के लिए भी बहुत लाभकारी है।        तीसरी बात ज्ञानार्जन के प्रति वर्णीजी की तीव्र लालसा देखने को मिलेगी जो उनकी विशेष होनहार का परिचायक है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप

Abhishek Jain

Abhishek Jain

धर्ममाता श्री चिरोज़ा बाई जी -१८

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,           धर्ममार्ग ही अपना लक्ष्य रखने वाले किसी व्यक्ति को किसी की ओर आगे बढ़ने को सम्बल मिले, किसी का सहारा मिले अथवा प्रोत्साहन मिले तो वह धर्मात्मा मोक्ष मार्ग में भी आगे बढ जाता है। मेरी दृष्टि में बाईजी द्वारा भी वर्णीजी को सम्बल मिला धर्म मार्ग में बढ़ने हेतु।       बाईजी के वर्णीजी के प्रति इन शब्दों -  'बेटा ! तुम चिंता न करो, मैं तुम्हारा पुत्रवत पालन करूँगी। तुम निशल्य होकर धर्मध्यान करो।' को पढ़कर हम सभी यही सोचेंगे कि धर्मध्यान हेतु प्रबल उपादान शक्ति ल

Abhishek Jain

Abhishek Jain

धर्ममाता श्री चिरोज़ा बाई जी -१७

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,           जैन कुल में जन्म लेने वाले श्रावक को धर्ममार्ग में स्थित होने के लिए विशेष पुरुषार्थ करना पढ़ता है जबकि अपने आत्मकल्याण की दृढ़ भावना रखने वाले गणेश प्रसाद का जन्म तो जैनेत्तर परिवार में हुआ था।        आत्मकथा के प्रस्तुत प्रसंग पूज्य वर्णीजी के धर्ममार्ग में आगे बढ़ने के प्रारंभिक समय को चित्रित करते हैं। एक महापुरुष के जीवन का यह चित्रण धर्मानुराग रखने वाले सभी पाठकों को लाभप्रद होगा। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?       *"धर्ममाता श्री चिर

Abhishek Jain

Abhishek Jain

धर्ममाता श्री चिरोज़ा बाई जी -१६

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,         बहुत मार्मिक है आत्मकथा की प्रस्तुती का आज का यह खंड। निश्चय ही यह पढ़कर आप विशिष्ट आनंद का अनुभव करेंगे।         यहाँ आपको देखने मिलेगा गणेशप्रसाद की धार्मिक आस्था के प्रति दृढ़ता तथा चिरौंजाबाईजी का साधर्मी बालक के प्रति ममत्व, उनकी सरलता तथा विशाल हृदयता। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?       *"धर्ममाता श्री चिरौंजाबाई जी"*                        क्रमांक - १६                                        मैं फिर भी नीची दृष्टि किये चुपचाप

Abhishek Jain

Abhishek Jain

धर्ममाता श्री चिरोज़ा बाई जी -१५

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,            आत्मकथा के आज के वर्णन से उन महत्वपूर्ण महिला का भी वर्णन प्रारम्भ हो रहा है जिनका जैनधर्म की पताका फहराने वाले गणेश प्रसाद जी वर्णी के धर्म-ध्यान में विशेष योगदान रहा है। वह महिला है वर्णीजी की धर्ममाता चिरौंजा बाईजी।           जिनधर्म के सम्बर्धन में पूज्य वर्णीजी का बड़ा योगदान है तो वर्णीजी की धर्मसाधना में बाईजी का बहुत बड़ा सहयोग रहा है।        बाई एक अत्यंत धार्मिक महिला थी। ऐसी विरली ही माँ होती हैं जो अपने पुत्र का पालन पोषण तो करती है साथ ह

Abhishek Jain

Abhishek Jain

×
×
  • Create New...