Jump to content
JainSamaj.World
  • entries
    70
  • comments
    0
  • views
    7,155

About this blog

पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी का जैन संस्कृति के संवर्धन में बहुत अधिक महत्व है। ऐसे उपकारी पुरुष के जीवन को हम सभी को अवश्य ही जानना चाहिए।

Entries in this blog

रामटेक - ४४

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           यहाँ पूज्य वर्णीजी ने मिथ्याप्रचार के कारण को स्पष्ट किया है साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि जीव को कल्याणकारी आगमा का अभ्यास करना बहुत आवश्यक है।      कल से वर्णीजी की मुक्तागिरी वंदना हेतु यात्रा का उल्लेख होगा। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                       *"रामटेक"*                      *क्रमांक - ४४*                 संसार में जो मिथ्या प्रचार फैल रहा है उसमें मूल कारण रागद्वेष की मलिनता से जो कुछ लिखा गया वह साहि

Abhishek Jain

Abhishek Jain

६४ - पं गोपालदास बरैया के संपर्क में

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,                    आप जान रहे हैं एक ऐसे महापुरुष की आत्मकथा जिनका जन्म तो अजैन कुल में हुआ था लेकिन जो आत्मकल्याण हेतु संयम मार्ग पर चले तथा वर्तमान में सुलभ दिख रही जैन संस्कृति के सम्बर्धन का श्रेय उन्ही को जाता है।     प्रस्तुत अंशो से हम लोग देख रहे हैं पूज्य वर्णी ने कितनी सहजता से अपनी ज्ञान प्राप्ति की यात्रा में आई सभी बातों को प्रस्तुत किया है। ? संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?       *"पं. गोपालदास वरैया के संपर्क में"*         

Abhishek Jain

Abhishek Jain

पं गोपालदास जी बरैया के संपर्क में - ६३

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,                    पूज्य वर्णीजी की प्रारम्भ से ही ज्ञानार्जन की प्रबल भावना थी तभी तो वह अभावजन्य विषय परिस्थियों में भी आगे आकर ज्ञानार्जन हेतु संलग्न हो पाये। भरी गर्मी में दोपहर में एक मील ज्ञानार्जन हेतु पैदल जाना भी उनकी ज्ञानपिपासा का ही परिचय है।       बहुत ही सरल ह्रदय थे गणेशप्रसाद। उनके जीवन का सम्पूर्ण वर्णन बहुत ही ह्रदयस्पर्शी हैं। ? संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?       *"पं. गोपालदास वरैया के संपर्क में"*                  

Abhishek Jain

Abhishek Jain

पं गोपालदास जी बरैया के संपर्क में - ६२

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        यहाँ से गणेशप्रसाद का जैनधर्म के बड़े विद्वान पं. गोपालदासजी वरैयाजी से संपर्क का वर्णन प्रारम्भ हुआ। वर्णीजी ने यहाँ उस समय उनके गुरु पं. पन्नालालजी बाकलीवाल का भी उनके जीवन में बहुत महत्व बताया है।         वर्णीजी के अध्यन के समय तक सिर्फ हस्तलिखित ग्रंथ ही प्रचलन में थे। यह महत्वपूर्ण बात यहाँ से ज्ञात होती है। जिनवाणी की कितनी विनय थी उस समय के श्रावकों में कि ग्रंथों का मुद्रण भी योग्य नहीं समझते थे। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी? *

Abhishek Jain

Abhishek Jain

महान मेला - ६१

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        यहाँ वर्णीजी द्वारा जयपुर मेले का वर्णन चल रहा है। इस मेले में जैनधर्म की बहुत ही प्रभावना हुई।       जयपुर नरेश द्वारा व्यक्त की जिनबिम्ब की महिमा बहुत सुंदर वर्णन है।      श्रीमान स्वर्गीय सेठ मूलचंदजी सोनी द्वारा मेले के आयोजन के कारण ही धर्म की अधिक प्रभावना हुई। यहाँ वर्णीजी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही- द्रव्य का होना पूर्वोपार्जित पुण्योदय है लेकिन उसका सदुपयोग बहुत ही कम पुण्यात्मा कर पाते हैं। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?

Abhishek Jain

Abhishek Jain

महान मेला - ६०

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        यहाँ वर्णीजी ने जयपुर के मेले का उल्लेख किया है। मेले से तात्पर्य धार्मिक आयोजन से रहता है।        यहाँ पर वर्णी जी ने स्व. श्री मूलचंद जी सोनी अजमेर वालों का विशेष उल्लेख किया। उनकी विद्वानों के प्रति आदर की प्रवृत्ति से अपष्ट होता है कि जो जितना गुणवान होता है वह उतना विनम्र होता है। ऐसे गुणी लोगों के संस्मरण हम श्रावकों को भी दिशादर्शन करते हैं। ?संस्कृति संवर्धक गणेश प्रसाद वर्णी?                    *"महान मेला"*                     

Abhishek Jain

Abhishek Jain

यह है जयपुर - ५९

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,         यहाँ पूज्यवर्णी जी ने जयपुर में उस समय श्रावकों की धर्म परायणता को व्यक्त किया है। साथ ही वहाँ से पाठशालाओं आदि से निकले विद्वानों का भी उल्लेख किया है।        आप सोच सकते हैं कि इन सभी विद्वानों का तो मैंने नाम भी नहीं सुना, अतः उनसे मुझे क्या प्रयोजन।          मेरा मानना है कि पूज्य वर्णी जी द्वारा उल्लखित विद्वानों का वर्णन आज हम लोगों के लिए इतिहास की भाँति ही है। यह एक सौभाग्य ही है जो हमको गुणीजनों तथा उनके गुणों को जानने का अवसर मिल रहा है।

Abhishek Jain

Abhishek Jain

चिरकांक्षित जयपुर - ५८

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,       आजकी प्रस्तुती में गणेश प्रसाद के जयपुर में अध्ययन का उल्लेख तथा उनकी पत्नी की मृत्यु के समाचार मिलने आदि का उल्लेख है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?              *"चिरकांक्षित जयपुर"*                     *"क्रमांक - ५८"*           यहाँ जयपुर में मैंने १२ मास रहकर श्री वीरेश्वरजी शास्त्री से कातन्त्र व्याकरण का अभ्यास किया और श्री चन्द्रप्रभचरित्र भी पाँच सर्ग पढ़ा।        श्री तत्वार्थसूत्रजी का अभ्यास किया और एक अध्याय श्र

Abhishek Jain

Abhishek Jain

विद्याध्ययन का सुयोग - ५६

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,         बम्बई में गणेश प्रसाद का अध्ययन प्रारम्भ हो गया लेकिन जलवायु उनके स्वास्थ्य के अनुकूल न थी अस्वस्थ्य हो गये। यहाँ से पूना गए।          स्वास्थ्य ठीक होने पर बम्बई आए, वहाँ कुछ दिन बार पुनः ज्वर आने लगा। वहाँ से अजमेर का पास केकड़ी गया। कुछ दिन ठहरा वहाँ से गणेशप्रसाद चिरकाल से प्रतीक्षित स्थान जयपुर गए। कल से उसका वर्णन रहेगा। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?             *"विद्याध्ययन का सुयोग"*                      *क्रमांक - ५६*

Abhishek Jain

Abhishek Jain

कर्मचक्र - ४८

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           पूज्य वर्णीजी के जीवन में कितनी विषय परिस्थियाँ थी यह आज की प्रस्तुती ज्ञात होगा।        ज्वर जो एक दिन छोड़कर आता था वह दो दिन छोड़कर आने लगा। चार कम्बल ओढ़ने से भी ज्वर में ठंड शांत न होती जबकि एक कम्बल भी नहीं। शरीर में पकनू खाज हो गई। प्रतिदिन २० मील चलते थे और भोजन था ज्वार के आटे की रोटी नमक के साथ।     मार्ग में घोर जंगल में भोजन को रुके, बुखार आने से बेहोश हो गए। ऐसी-२ कठिन परिस्थितियों में भी पूज्य वर्णीजी वंदना के मार्ग में आगे बढ़ते रहे

Abhishek Jain

Abhishek Jain

कर्मचक्र - ४७

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           अजैन कुल से आकर जैनधर्म के सिद्धांतों का प्रचारित करने का श्रेय रखने वाले पूज्य वर्णीजी के प्रारंभिक जीवन में बहुत ही विषम परिस्थितियाँ थी।        आजकी प्रस्तुती को पढ़कर, पूज्य वर्णीजी के प्रति श्रद्धा रखने वाले हर एक पाठक की आँख भीगे बिना नहीं रहेगी।         कितनी दयनीय स्थिति थी उस समय उनकी, पैसे के लिए मजदूरी करने का प्रयास किया, अशक्य होने से अपनी परिस्थिति में रोते रहे। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                    

Abhishek Jain

Abhishek Jain

कर्मचक्र - ४६

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           इस अंश का शीर्षक है कर्मचक्र। बिल्कुल सही शीर्षक है। जैनधर्म की महती प्रभावना करने वाले महापुरुष के जीवन में प्रारंभिक समय में कर्मों की स्थिति देखिए। कितनी दयनीय स्थिति।       कपढ़े विवर्ण हो गए, शरीर में खाज हो गया, एक दिन छोड़कर ज्वर आने लगा। कोई सहायता को नहीं, कोई पूंछने वाला नहीं। कोई सुनने वाला नहीं।       जिनधर्म में विशेष श्रद्धावान गणेश प्रसाद का वह प्रारंभिक समय बड़ा ही विषम था। वह गिरिनार जी की वंदना के लोभ स्वरूप जुएँ में पैसे भी लगा

Abhishek Jain

Abhishek Jain

मुक्तागिरी - ४५

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           आज के प्रस्तुती में पूज्य वर्णीजी की मुक्तागिरि वंदना का वृत्तांत है।       अगली प्रस्तुती का शीर्षक है "कर्म चक्र"। जिनमार्ग में विशेष प्रीति रखने वाले पूज्य वर्णीजी की हालत उस समय अत्यंत ही दयनीय हो गई थी। आत्मकथा के उन प्रसंगों को जानकर हम पुण्य पुरुष पूज्य वर्णीजी के असाधारण व्यक्तित्व से परिचत होंगे। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                       *"मुक्तागिरि"*                      *क्रमांक - ४५*          

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सेठ लक्ष्मीचंद जी - ३२

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?              *"सेठ लक्ष्मीचंद जी"*                     क्रमांक - ३२                उन्होंने मुझसे कहा- 'आपका शुभागमन कैसे हुआ?' मैंने कहा- 'क्या कहूँ? मेरी दशा अत्यंत करुणामयी है। उसका दिग्दर्शन कराने से आपके चित्त में खिन्नता ही बढ़ेगी।       प्राणियों ने जो अर्जन किया है उसका फल कौन भोगे? मेरी कथा सुनने की इच्छा छोड़ दीजिए। कुछ जैनधर्म का वर्णन कीजिए, जिससे शांति का लाभ हो।'         आपने एक घण्टा आत्मधर्म का समीचीन रीति से विवेचन कर मे

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रामटेक - ४३

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,             कल की प्रस्तुती के अंश में वर्णीजी द्वारा वर्णित निश्चय की दृष्टि से प्रभावना को देखा। उन्होंने वर्णन किया कि आत्मीय श्रद्धान, ज्ञान- चारित्र द्वारा निर्मल बनाने का प्रयत्न जिससे अन्य धर्माबलंबियों के ह्रदय में स्वयं समा जाये कि धर्म यह वस्तु है। निश्चय प्रभावना है।      आज के अंशों में व्यवहार में प्रभावना को वर्णीजी ने स्पष्ट किया है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                       *"रामटेक"*                      *क्

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रामटेक - ४२

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,      पूज्य वर्णीजी की दृष्टि धर्म के मूल पर हमेशा रही। अतः वर्णीजी ने सभी तीर्थ स्थानों में विद्वान द्वारा हमेशा धार्मिक सिद्धांतों की व्याख्या तथा नियमित शास्त्र प्रवचन को बहुत आवश्यक कार्य बताया। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                       *"रामटेक"*                      *क्रमांक - ४२*              हम लोग मेले के अवसर पर हजारों रुपया व्यय कर देते हैं, परंतु लोगों को यह पता नहीं चलता कि मेला करने का उद्देश्य क्या है? समय की ब

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रामटेक - ४१

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,         अनेक पाठकों ने श्री रामटेक जी की वंदना की होगी। आत्मकथा की आज की प्रस्तुती के अंशों से हम पूज्य वर्णीजी की अनुभूति के अनुसार श्री रामटेक जी की वंदना करेंगे।      पूज्य वर्णीजी की दृष्टि धर्म के मूल पर हमेशा रही। अतः वर्णीजी ने सभी तीर्थ स्थानों में विद्वान द्वारा हमेशा धार्मिक सिद्धांतों की व्याख्या तथा नियमित शास्त्र प्रवचन को बहुत आवश्यक कार्य बताया। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                       *"रामटेक"*                

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रामटेक - ४०

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                       *"रामटेक"*                      *क्रमांक - ४०*               श्री कुण्डलपुर से यात्रा करने के पश्चात श्री रामटेक के वास्ते प्रयाण किया। हिंडोरिया आया। यहाँ तालाब पर प्राचीन काल का एक जिनबिम्ब है। यहाँ पर कोई जैनी नहीं। यहाँ से चलकर दमोह आया, यहाँ २०० घर जैनियों के बड़े-बड़े धनाढ्य हैं।       मंदिरों की रचना अति सुदृढ़ और सुंदर है। मूर्ति समुदाय पुष्कल है। अनेक मंदिर है। मेरा किसी से परिचय न था और न करने का प्रयास भी कि

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३९

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,       अद्भुत भावाभिव्यक्ति पूज्य वर्णीजी की श्री वीर प्रभु के चरणों में।       मैं पूर्ण विश्वास के साथ कर सकता हूँ स्वाध्याय की रुचि रखने वाला हर एक श्रावक जो प्रस्तुत भावों को ध्यानपूर्वक पढ़ता है वह अद्भुत अभिव्यक्ति कहे बिना रहेगा ही नहीं।        आत्मकथा प्रस्तुती का यह प्रारंभिक चरण ही है इतने में ही हम पूज्य वर्णीजी के भावों की गहराई से उनका परिचय पाने लगे हैं।       उनकी आत्मकथा ऐसे ही तत्वपरक उत्कृष्ट भावों से भरी पढ़ी है। निश्चित ही वर्णीजी की

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३८

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,       पूज्य वर्णीजी की श्री कुण्डलपुरजी की वंदना के समय वीर प्रभु के सम्मुख प्रार्थना के उल्लेख की प्रस्तुती चल रहीं है।      आप देखेंगे कि वर्णीजी की प्रस्तुत प्रार्थना में कितने सरल तरीके से जिनेन्द्र प्रभु के दर्शन का विज्ञान प्रस्तुत हो रहा है। वर्णीजी के भावों व तत्व चिंतन को पढ़कर आपको लगेगा जैसे आपके अतःकरण की बहुत सारी जटिलताएँ समाप्त होती जा रही हैं। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?           *"रेशन्दीगिरि व कुण्डलपुर"*          

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३७

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        आज की प्रस्तुती में पूज्य वर्णीजी के प्रारंभिक समय में श्री कुण्डलपुर सिद्ध क्षेत्र में वंदना के समय भावों का उल्लेख है।       एक भव्यात्मा के विशुद्ध भाव अवश्य ही हम सभी के जीवन को भी कल्याण की दिशा बतलाने वाले हैं यदि आप इनको गंभीरता पूर्वक पढ़ते हैं।        पूज्य वर्णीजी ने यहा भली प्रकार स्पष्ट किया है कि भगवान वीतरागी हैं वह किसी को कुछ नहीं देते। वीरप्रभु के श्री चरणों में उनकी विनती जिनेन्द्र भगवान के दर्शन का महत्व भी स्पष्ट करती है।    

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३६

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        रुचिवान पाठक यह विचार कर रहे होंगे कि गणेश प्रसाद ने नैनागिरि से श्री कुण्डलपुर जाते समय रास्ते में जहाँ रात्रि विश्राम किया था वहाँ लोगों के भोजन के आग्रह के निवेदन में क्या किया। आज आप वह जानेगें।        श्री कुण्डलपुर जी की वंदना तो अधिकांश पाठकों ने की होगी। लेकिन वर्णी जी का वंदना संबंधी अनुभूति परक वर्णन का यह उल्लेख आपकी वंदना की स्मृति को ताजा करेगा ही साथ ही उस समय वर्णीजी द्वारा की गई आनन्दनुभीति का भी अनुभव करायेगा।           कभी कभी प्रस

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३५

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        मैं जब पूज्य वर्णीजी की आत्मकथा को पढ़ता हूँ। ह्रदय भीग जाता है उनके जीवन को जानकर।         यदि आप भी पूज्य वर्णीजी के जीवन चरित्र को रुचि पढ़ रहे हैं तो आपका अंतःकरण भी एक महापुरुष के जीवन को नजदीक से स्पर्श करके अद्भुत आनंद के अनुभव से अछूता नहीं रहेगे।         आत्मकथा में आज के अंश से ज्ञात होता है कि भले ही उनके पास साधन नहीं थे लेकिन गणेश प्रसाद आत्मसाधना के लिए कितने व्याकुल थे।        रेशन्दीगिरि अर्थात सिद्ध क्षेत्र नैनागिरि वंदना के साथ

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३४

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,         आत्मकथा की आज की प्रस्तुती में पूज्य वर्णीजी द्वारा रेशन्दीगिरी सिद्ध क्षेत्र की वंदना के समय अपनी अनुभूति का वर्णन है।         रुचिवान पाठक अवश्य ही वर्णीजी की अनुभूति के वर्णन को पढ़कर अपने अंदर भी आनंदानुभूति कर रहे होंगे। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?           *"रेशन्दीगिरि व कुण्डलपुर"*                      *क्रमांक - ३४*            पूज्य वर्णी जी अपनी आत्मकथा में रेशन्दीगिरी तीर्थ की वंदना के समय अपने अनुभूति को

Abhishek Jain

Abhishek Jain

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३३

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           जिनधर्म में अनुरक्त अंतःकरण वाले गणेश प्रसाद अपनी माँ व पत्नी के पास वापिस तो आ गए लेकिन उनका मन धर्म-ध्यान की क्रियाओं की ओर ही आकर्षित था।         पिछले प्रसंग से स्पष्ट होता है कि पूज्य वर्णी जी की स्थिति बहुत दीनता पूर्ण थी।      उनकी आत्मा का धर्म-ध्यान के प्रति आकर्षण ही उनकी तीर्थवंदना आदि को प्रेरित कर रहा था जबकि गणेश प्रसाद को स्वयं ही मालूम नहीं था कि तीर्थवंदना आदि क्रियाओं का उनका उद्देश्य क्या है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद व

Abhishek Jain

Abhishek Jain

×
×
  • Create New...