Jump to content
JainSamaj.World
  • entries
    335
  • comments
    11
  • views
    30,878

About this blog

जाने प्रथमाचार्य शान्तिसागरजी महराज को

Entries in this blog

हरिजनों पर प्रेम दृष्टि - अमृत माँ जिनवाणी से - ६५

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ६५     ?                "हरिजनों पर प्रेम दृष्टि"                एक बार आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज से पूंछा- "महाराज हरिजनों के उद्धार के विषय में आपका क्या विचार है?                   महाराज कहने लगे- "हमें हरिजनों को देखकर बहुत दया आती है। हमारा उन बेचारों पर रंचमात्र भी द्वेष नहीं है।                         गरीबी के कारण वे बेचारे अपार कष्ट भोगते हैं। हम उनका तिरस्कार नहीं करते हैं। हमारा तो कहना तो यह है कि उन दीनों का आर्थिक कष्ट दू

Abhishek Jain

Abhishek Jain

स्वर्गारोहण की रात्रि का वर्णन - अमृत माँ जिनवाणी से - १२५

?   अमृत माँ जिनवाणी से - १२५  ?         "स्वर्गारोहण की रात्रि का वर्णन"                          आचार्य महाराज का स्वर्गारोहण भादों सुदी दूज को सल्लेखना ग्रहण के ३६ वें दिन प्रभात में ६ बजकर ५० मिनिट पर हुआ था।                  उस दिन वैधराज महाराज की कुटि में रात्रि भर रहे थे। उन्होंने महाराज के विषय में बताया था कि- "दो बजे रात को हमने जब महाराज की नाडी देखी, तो नाड़ी की गति बिगड़ी हुई अनियमित थी। तीन, चार ठोके के बाद रूकती थी, फिर चलती थी। हाथ-पैर ठन्डे हो रहे थे। रुधिर का

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सुलझी हुई मनोवृत्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - ४१

?    अमृत माँ जिनवाणी से - ४१    ?              "सुलझी हुई मनोवृत्ति"        एक समय एक महिला ने भूल से आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज को आहार में वह वस्तु दे दी, जिसका उन्होंने त्याग कर दिया था। उस पदार्थ का स्वाद आते ही वे अंतराय मानकर आहार लेना बंद कर चुपचाप बैठ गए।           उसके पश्चात उन्होंने पाँच दिन का उपवास किया और कठोर प्राश्चित भी लिया।यह देखकर वह महिला महाराज के पास आकर रोने लगी कि मेरी भूल के कारण आपको इतना कष्ट उठाना पड़ा।         महाराज ने उस वृद्धा को बड़े

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सामयिक बात - अमृत माँ जिनवाणी से - ९

?      अमृत माँ जिनवाणी से - ९      ?                    सामयिक बात      आचार्य शान्तिसागरजी महाराज सामयिक बात करने में अत्यंत प्रवीण थे।         एक दिन की बात है, शिरोड के बकील महाराज के पास आकर कहने लगे -  "महाराज, हमे आत्मा दिखती है।  अब और क्या करना चाहिए?"         कोई तार्किक होता, तो बकील साहब के आत्मदर्शन के विषय में विविध प्रश्नो के द्वारा उनके कृत्रिम आत्मबोध की कलई खोलकर उनका उपहास करने का उद्योग करता, किन्तु यहॉ संतराज आचार्य महाराज के मन में उन भले बकील

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सल्लेखना के लिए मानसिक तैयारी - अमृत माँ जिनवाणी से - ८८

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८८     ?     "सल्लेखना के लिए मानसिक तैयारी"                     यम सल्लेखना लेने के दो माह पूर्व से ही पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के मन में शरीर के प्रति गहरी विरक्ति का भाव प्रवर्धमान हो रहा था।              इसका स्पष्ट पता इस घटना से होता है। कुंथलगिरि आते समय एक गुरुभक्त ने महाराज की पीठ दाद रोग को देखा। उस रोग से उनकी पीठ और कमर का भाग विशेष व्याप्त था।          भक्त ने कहा- "महाराज ! इस दाद की दवाई क्यों नहीं करते ? दवा लगाने

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सल्लेखना का निश्चय - अमृत माँ जिनवाणी से - ९२

?    अमृत माँ जिनवाणी से - ९२     ?             "सल्लेखना का निश्चय"               पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने सल्लेखना करने का निश्चय गजपंथा में ही सन् १९५१ में किया था; किन्तु यम सल्लेखना को कार्यरूपता कुंथलगिरि में प्राप्त हुई थी। महाराज ने सन् १९५२ में बरामति चातुर्मास के समय पर्युषण में मुझसे कहा था कि- "हमने गजपंथा में द्वादशवर्ष वाली सल्लेखना का उत्कृष्ट नियम ले लिया है। अभी तक हमने यह बात जाहिर नहीं की थी। तुमसे कह रहे हैं। इसे तुम दूसरों को भी कहना चाहो, तो क

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सल्लेखना का ३५ वां दिन - अमृत माँ जिनवाणी से - १२३

?   अमृत माँ जिनवाणी से - १२३   ?           "सल्लेखना का ३५ वाँ दिन"                  युग के अनुसार हीन सहनन को धारण करने वाले किसी मनुष्य का यह निर्मलता पूर्वक स्वीकृत समाधिमरण युग-२ तक अद्वितीय माना जायेगा।            आचार्य महाराज का मन तो सिद्ध भगवान के चरणों का विशेष रूप से अनुगामी था। वह सिद्धालय में जाकर अनंतसिद्धों के साथ अपने स्वरुप में निमग्न होता था।            आचार्य महाराज के समीप अखंड शांति थी। जो संभवतः उन शांति के सागर की मानसिक स्थिति का अनुशरण करती थी।

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सर्पराज का शरीर पर लिपटना - अमृत माँ जिनवाणी से - १७

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १७    ?         "सर्पराज का शरीर पर लिपटना"         आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की तपस्चर्या अद्भुत थी। कोगनोली में लगभग आठ फुट लंबा स्थूलकाय सर्पराज उनके शरीर से दो घंटे पर्यन्त लिपटा रहा । वह सर्प भीषण होने के साथ ही वजनदार भी था । महाराज का शरीर अधिक बलशाली था, इससे वे उसके भारी भोज का धारण कर सके।              दो घंटे बाद में उनके पास पहुँचा । उस समय वे अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में थे । किसी प्रकार की खेद, चिंता या मलिनता उनके मुख मंडल पर नहीं

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सर्पराज का मुख के समक्ष खड़ा रहना - अमृत माँ जिनवाणी से - ३०

?    अमृत माँ जिनवाणी से - ३०    ?   "सर्पराज का मुख के समक्ष खड़ा रहना"               एक दिन शान्तिसागरजी महाराज जंगल में स्थित एक गुफा में ध्यान कर रहे थे कि इतने में सात-आठ हाथ लंबा खूब मोटा लट्ठ सरीखा सर्प आया। उसके शरीर पर बाल थे। वह आया और उनके मुँह के सामने फन फैलाकर खड़ा हो गया।            उसके नेत्र ताम्र रंग के थे। वह महाराज पर दृष्टि डालता था और अपनी जीभ निकालकर लपलप करता था।उसके मुख से अग्नि के कण निकलते थे।              वह बड़ी देर तक हमारे नेत्रो के सामने खड़ा

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सबकी शुभकामना - अमृत माँ जिनवाणी से - ११३

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११३   ?              "सबकी शुभकामना"               पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज वास्तव में लोकोत्तर महात्मा थे। विरोधी व विपक्षी के प्रति भी उनके मन मे सद्भावना रहती थी। एक दिन मैंने कहा- "महाराज ! मुझे आशीर्वाद दीजिये, ऐसी प्रार्थना है।             महाराज ने कहा था- "तुम ही क्यों जो भी धर्म पर चलता है, उसके लिए हमारा आशीर्वाद है कि वह सद्बुद्धि प्राप्त कर आत्मकल्याण करे।" ?पच्चीसवाँ दिन - ७ सितम्बर११५५?                  सल्लेखना

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सप्तम प्रतिमा धारण - अमृत माँ जिनवाणी से - ९९

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ९९     ?                "सप्तम प्रतिमा धारणा"                        कल के प्रसंग में हमने देखा कि बाबूलाल मार्ले कोल्हापुर वालों ने पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का कमंडल पकड़ने हेतु भविष्य में क्षुल्लक दीक्षा लेने की भावना व्यक्त की।                  बाबूलाल मार्ले ने महाराज का कमण्डलु उठा लिया, तब महाराज बोले- "देखो ! क्षण भर का भरोसा नहीं है। कल क्या हो जायेगा यह कौन जानता है। तुम आगे दीक्षा लोगे यह ठीक है किन्तु बताओ ! अभी क्या लेते हो।

Abhishek Jain

Abhishek Jain

सतगौड़ा के पिता - अमृत माँ जिनवाणी से - ३४

?    अमृत माँ जिनवाणी का - ३४     ?                "सतगौड़ा के पिता"       आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने गृहस्थ जीवन मे जो उनके पिता थे उनके बारे में बताया था।कि उनके पिता प्रभावशाली, बलवान, रूपवान, प्रतिभाशाली, ऊंचे पूरे थे। वे शिवाजी महाराज सरीखे दिखते थे।        उन्होंने १६ वर्ष पर्यन्त दिन मे एक बार ही भोजन पानी लेने के नियम का निर्वाह किया था, १६ वर्ष पर्यन्त ब्रम्हचर्य व्रत रखा था। उन जैसा धर्माराधना पूर्वक सावधानी सहित समाधिमरण मुनियो के लिए भी कठिन है।      ए

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शेर - अमृत माँ जिनवाणी से - २५

?     अमृत माँ जिनवाणी से - २५     ?                        "शेर"        "कोन्नूर की गुफा में एक बार आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ध्यान कर रहे थे, तब शेर आ गया था।"         मैंने पूंछा, "महाराज शेर के आने से भय का संचार तो हुआ होगा?"      महाराज ने कहा, "नहीं कुछ देर बाद शेर वहाँ से चला गया ।"    मैंने पूंछा, "महाराज निर्ग्रन्थ दीक्षा लेने के बाद कभी शेर आपके पास आया था?"     महाराज ने कहा, "हम मुक्तागिरी के पर्वत पर रहते थे, वहाँ शेर आया करता था। श्रवणबेलगो

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शुभ दोहला - अमृत माँ जिनवाणी से - १८

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १८    ?                   "शुभ दोहला"        चरित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के लेखक जब आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के बचपन की स्मृतियों के बारे में जानने हेतु उनके गृहस्थ जीवन के बड़े भाई मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज के पास गए।     उन्होंने पूंछा, "स्वामिन् संसार का उद्धार करने वाले महापुरुष जब माता पिता के गर्भ में आते हैं, तब शुभ- शगुन कुटुम्बियों आदि को देखते हैं। माता को भी मंगल स्वप्न आदि का दर्शन होता है।          आचार्य महाराज सदृश रत्नत्रय

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शिष्यों को संदेश - अमृत माँ जिनवाणी से - १२९

?   अमृत माँ जिनवाणी से - १२९  ?                "शिष्यों को सन्देश"                 स्वर्गयात्रा के पूर्व आचार्यश्री ने अपने प्रमुख शिष्यों को यह सन्देश भेजा था, कि हमारे जाने पर शोक मत करना और आर्तध्यान नहीं करना।        आचार्य महाराज का यह अमर सन्देश हमे निर्वाण प्राप्ति के पूर्व तक का कर्तव्य-पथ बता गया है। उन्होंने समाज के लिए जो हितकारी बात कही थी वह प्रत्येक भव में काम की वस्तु है।                 ?अनुमान?               पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शिष्य को गुरुत्व की प्राप्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - ८१

☀इस प्रसंग को सभी अवश्य ही पढ़ें। ?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८१     ?          "शिष्य को गुरुत्व की प्राप्ति"                        पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरज़ी महराज का संस्मरण बताते हुए पूज्य मुनिश्री १०८ आदिसागरजी महाराज ने बताया कि-                                 आचार्य शान्तिसागरजी महाराज ने (मुनि देवेन्द्रकीर्ति महाराज) से क्षुल्लक दीक्षा ली थी। देवप्पास्वामी सन् १९२५ में श्रवणबेलगोला में थे, उस समय महाराज भी वहाँ पहुंचे।                   देवप्पा स्वामी ने

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शिखरजी की वंदना से त्याग और नियम - अमृत माँ जिनवाणी से - ५

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ५      ?   "शिखरजी की वंदना से त्याग और नियम"      आचार्यश्री शान्तिसागर महाराज गृहस्थ जीवन में जब शिखरजी की वंदना को जब बत्तीस वर्ष की अवस्था में पहुंचे थे, तब उन्होंने नित्य निर्वाण भूमि की स्मृति में विशेष प्रतिज्ञा लेने का विचार किया और जीवन भर के लिए घी तथा तेल भक्षण का त्याग किया।घर आते ही इन भावी मुनिनाथ ने एक बार भोजन की प्रतिज्ञा ले ली।      रोगी व्यक्ति भी अपने शारीर रक्षण हेतु कड़ा संयम पालने में असमर्थ होता है किन्तु इन प्रचंड -बली सतपु

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शहद भक्षण में क्या दोष है - अमृत माँ जिनवाणी से - ७

?    अमृत माँ जिनवाणी से - ७    ?        "शहद भक्षण में क्या दोष है"       एक दिन मैंने आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज से पूंछा, "महाराज, आजकल लोग मधु खाने की ओर उद्यत हो रहे हैं क्योंकि उनका कथन है, क़ि अहिंसात्मक पद्धति से जो तैयार होता है, उसमे दोष नहीं हैं।"    महाराज ने कहा, "आगम में मधु को अगणित त्रस जीवो का पिंड कहा है, अतः उसके सेवन में महान पाप है।    मैंने कहा, "महाराज सन् १९३४ को मै बर्धा आश्रम में गाँधी जी से मिला था।उस समय वे करीब पाव भर शहद खाया करते थे।मैं

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शरीर में भेदबुद्धि - अमृत माँ जिनवाणी से - ९१

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ९१     ?                 "शरीर में भेद-बुद्धि"                               एक बार पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने मुझसे पूंछा था- "क्यों पंडितजी चूल्हें में आग जलने से तुम्हे कष्ट होता है या नहीं ?              मैंने कहा- "महाराज ! उससे हमे क्या बाधा होगी। हम तो चूल्हे से पृथक हैं।"              महाराज बोले- "इसी प्रकार हमारे शरीर में रोग आदि होने पर भी हमे कोई बाधा नहीं होती है"               यथार्थ में पूज्यश्री गृहस्थ जीवन मे

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शरीर नौकर है - अमृत माँ जिनवाणी से - ७८

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७८     ?                  "शरीर नौकर है"                      मुनिश्री वर्धमान सागर जी महाराज ने अपने संस्मरण में आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के बारे में बताया कि -           "उनकी दृष्टि थी कि यह शरीर नौकर है। नौकर को भोजन दो और काम लो। आत्मा को अमृत-पान कराओ।"                भादों सुदी त्रयोदशी को महाराज ने समयसार प्रवचन में कहा था- "द्रव्यानुयोग के अभ्यास के लिए प्रथमानुयोग सहायक होता है। उसके अभ्यास से द्रव्यानुयोग कठिन नहीं पड़ता।" 

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शरीर निष्पृह साधुराज - अमृत माँ जिनवाणी से - ४३

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ४३     ?             "शरीर निस्पृह साधुराज"           आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ज्ञान-ज्योति के धनी थे। वे शरीर को पर वस्तु मानते थे। उसके प्रति उनकी तनिक भी आशक्ति नही थी।          एक दिन पूज्य गुरुदेव से प्रश्न पूंछा गया- "महाराज ! आपके स्वर्गारोहण के पश्चात आपके शरीर का क्या करें?"      उत्तर- "मेरी बात मानोगे क्या?"      प्रश्नकर्ता- "हां महाराज ! आपकी बात क्यों नही मानेंगे?"      महाराज- "मेरी बात मानते हो, तो शरीर को नदी, नाला,

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शरीर के प्रति घारणा - अमृत माँ जिनवाणी से - ११५

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११५   ?                "शरीर के प्रति धारणा"           अन्न के द्वारा जिस देह का पोषण होता है, वह अनात्मा (आत्मा रहित) रूप है। इस बात को सभी लोग जानते हैं। परंतु इस पर विश्वास नहीं है।        पूज्य शान्तिसागरजी महाराज ने कहा था- "अनंत काला पासून जीव पुद्गल दोन्ही भिन्न आहे। हे सर्व जग जाणतो, परंतु विश्वास नहीं।"        उनका यह कथन भी था तथा तदनुसार उनकी दृढ़ धारणा थी कि- "जीव का पक्ष लेने पर पुद्गल का घात होता है और पुद्गल का पक्ष लेने पर जीव का

Abhishek Jain

Abhishek Jain

शक्ति की परीक्षा - अमृत माँ जिनवाणी से - ७७

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ७७     ?                  "शक्ति की परीक्षा"                आचार्य शान्तिसागरजी महाराज के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई पूज्य वर्धमानसागरजी महाराज ने उनके पूर्व समय का एक प्रसंग बताया-                "एक बढ़ई ने भोज में आकर शक्ति परीक्षण हेतु एक लंबा खूंटा गाड़ा था। वह गाँव में किसी से ना उखड़ा, उसे नागपंचमी के दिन महाराज ने जरा ही देर में उखाड़ दिया था और चुप चाप घर आ गए थे।               जब खूंटा उन्होंने उखाड़ा तब मैंने कहा था- "ऐसा काम नहीं करना। चोट

Abhishek Jain

Abhishek Jain

वैराग्य भाव - अमृत माँ जिनवाणी से - १०७

?     अमृत माँ जिनवाणी से - १०७     ?                    "वैराग्य भाव"                     कुछ विवेकी भक्तों ने पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज से प्रार्थना की थी- "महाराज अभी आहार लेना बंद मत कीजिए। चौमासा पूर्ण होने पर मुनि, आर्यिका आदि आकर आपका दर्शन करेंगे। चौमासा होने से वे कोई भी गुरुदर्शन हेतु नहीं आ सकेगें।"        महाराज ने कहा- "प्राणी अकेला जन्म धारण करता है, अकेला जाता है, 'ऐसी एकला जासी एकला, साथी कुणि न कुणाचा.(कोई किसी का साथी नहीं है।) ' क्यों मै दूसरों

Abhishek Jain

Abhishek Jain

वैभवशाली दया के पात्र हैं - अमृत माँ जिनवाणी से - १०

?     अमृत माँ जिनवाणी से -१०     ?           "वैभवशाली दया पात्र हैं"      दीन और दुखी जीवो पर तो सबको दया आती है । सुखी प्राणी को देखकर किसके अंतःकरण में करुणा का भाव जागेगा ?        आचार्य शान्तिसागर महाराज की दिव्य दृष्टि में धनी और वैभव वाले भी उसी प्रकार करुणा व् दया के पात्र हैं, जिस प्रकार दीन, दुखी तथा विपत्तिग्रस्त दया के पात्र हैं। एक दिन महाराज कहने लगे, "हमको संपन्न और सुखी लोगों को देखकर बड़ी दया आती है।"       मैंने पुछा, "महाराज ! सुखी जीवो पर दया भाव का

Abhishek Jain

Abhishek Jain

×
×
  • Create New...