हम पुनः वंदन करते हैं , आचार्य रविषेण, आचार्य विमलसूरि, कवि स्वयंभू, तुलसीदास आदि अन्य सभी रामकाव्यकारों को जिन्होंने राम काव्य की रचना कर मानव के कल्याण हेतु मार्ग प्रदर्शित किया। आगे हम रामकाव्य के जाम्बवन्त पात्र का कथन करते हैं, जिसने राम को सीता की प्राप्ति में सहयोग दिया।
काव्य के प्रारम्भिक काण्डों में जाम्बवन्त के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलता। मात्र 67वीं संधि के 14वें कडवक में सुग्रीव द्वारा की गई व्यूह रचना में जाम्बवन्त का उल्लेख इस प्रकार मिलता है- जो बुद्धि में सबसे बड़ा था
लक्ष्मण
प्रशंसा एक ऐसी चीज है जिससे बड़े-योगी भी नहीं बच पाते।
निन्दा की आँच जिसे जला भी नहीं सकती, प्रशंसा की छाँव उसे छार-छार कर देती है।
लक्ष्मण राजा दशरथ व उनकी रानी सुमित्रा के पुत्र तथा काव्य के नायक राम के छोटे भाई हंै। राम व लक्ष्मण के विषय में स्वयंभू कहते हैं - एक्कु पवणु अण्णेक्कु हुआसणु, एक पवन था, तो दूसरा आग। सुन्दर व आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लक्ष्मण के जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाएँ काव्य में इस प्रकार हैं-
सुन्दर व आकर्षक तथा कला प्रिय लक्ष्मण के
आधुनिक भारतीय भाषाओं की जननी: अपभ्रंश
भारतदेश के भाषात्मक विकास को तीन स्तरों पर देखा जा सकता है।
1. प्रथम स्तर: कथ्य प्राकृत, छान्द्स एवं संस्कृत (ईसा पूर्व 2000 से ईसा पूर्व 600 तक)
वैदिक साहित्य से पूर्व प्राकृत प्रादेशिक भाषाओं के रूप में बोलचाल की भाषा (कथ्य भाषा) के रूप से प्रचलित थी। प्राकृत के इन प्रादेशिक भाषाओं के विविध रूपों के आधार से वैदिक साहित्य की रचना हुई औरा वैदिक साहित्य की भाषा को ‘छान्दस’ कहा गया, जो उस समय की साहित्यिक भाषा बन गई। आगे चलकर पाणिनी ने अपने स