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२२. यम मुनि की कथा

मैं देव, गुरु और जिनवाणी को नमस्कार कर यम मुनि की कथा लिखता हूँ, जिन्होंने बहुत ही थोड़ा ज्ञान होने पर भी अपने को मुक्ति का पात्र बना लिया और अन्त में वे मोक्ष गए। यह कथा सब सुख की देने वाली है ॥१॥ उड्रदेश के अन्तर्गत धर्म नाम का प्रसिद्ध और सुन्दर शहर है। उसके राजा थे यम। वे बुद्धिमान् और शास्त्रज्ञ थे। उनकी रानी का नाम धनवती था । धनवती के एक पुत्र और एक पुत्री थी । उनके नाम थे गर्दभ और कोणिका । कोणिका बहुत सुन्दरी थी । धनवती के अतिरिक्त राजा की और भी कई रानियाँ थीं। उनके पुत्रों की संख्या

२१. पंच नमस्कार मंत्र - माहात्म्य कथा

मोक्षसुख प्रदान करने वाले श्री अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं को नमस्कार कर पंच नमस्कार मंत्र की आराधना द्वारा फल प्राप्त करने वाले सुदर्शन की कथा लिखी जाती है ॥१॥ अंगदेश की राजधानी चम्पानगरी में गजवाहन नाम के एक राजा हो चुके हैं। वे बहुत खूबसूरत और साथ ही बड़े भारी शूरवीर थे । अपने तेज से शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सारे राज्य को उन्होंने निष्कण्टक बना लिया था। वहीं वृषभदत्त नाम के एक सेठ रहा करते थे । उनकी गृहिणी का नाम था अर्हड्वासी। अपनी प्रिया पर सेठ का बहुत प्रेम था । वह भी

२०. पद्मरथ राजा की कथा

इन्द्र, धरणेन्द्र, विद्याधर, राजा, महाराजाओं द्वारा पूज्य जिनभगवान् के चरणों को नमस्कार कर मैं पद्मरथ राजा की कथा लिखता हूँ, जो प्रसिद्ध जिनभक्त हुआ है ॥१॥ मगध देश के अन्तर्गत एक मिथिला नाम की सुन्दरी नगरी थी । उसके राजा थे पद्मरथ। वे बड़े बुद्धिमान् और राजनीति के अच्छे जानने वाले थे, उदार और परोपकारी थे । सुतरा वे खूब प्रसिद्ध थे ॥२॥ एक दिन पद्मरथ शिकार के लिए वन में गए हुए थे। उन्हें एक खरगोश दीख पड़ा। उन्होंने उसके पीछे अपना घोड़ा दौड़ाया । खरगोश उनकी नजर से ओझल होकर न जाने कहाँ अदृ

१९. श्रेणिक राजा की कथा

केवलज्ञानरूपी नेत्र के द्वारा समस्त संसार के पदार्थों के देखने, जानने वाले और जगत्पूज्य श्री जिनभगवान् को नमस्कार कर मैं राजा श्रेणिक की कथा लिखता हूँ, जिसके पढ़ने से सर्वसाधारण का हित हो। श्रेणिक मगध देश के अधीश्वर थे। मगध की प्रधान राजधानी राजगृह थी । श्रेणिक कई विषयों के सिवा राजनीति के बहुत अच्छे विद्वान् थे । उनकी महारानी चेलना बड़ी धर्मात्मा, जिनभगवान् की भक्त और सम्यग्दर्शन से विभूषित थी । एक दिन श्रेणिक ने उससे कहा- देखो, संसार में वैष्णव धर्म की बहुत प्रतिष्ठा है और वह जैसा सुख देने वाल

१८. ब्रह्मदत्त की कथा

परम भक्ति से संसार पूज्य जिन भगवान् को नमस्कार कर मैं ब्रह्मदत्त की कथा लिखता हूँ। वह इसलिए कि सत्पुरुषों को इसके द्वारा कुछ शिक्षा मिले ॥१॥ कांपिल्य नामक नगर में एक ब्रह्मरथ नाम का राजा रहता था । उसकी रानी का नाम था रामिली । वह सुन्दरी थी, विदुषी थी और राजा को प्राणों से भी कहीं प्यारी थी। बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त इसी के पुत्र थे। वे छह खण्ड पृथ्वी को अपने वश करके सुखपूर्वक अपना राज्य शासन का काम करते थे ॥२-३॥ एक दिन राजा भोजन करने को बैठे उस समय उनके विजयसेन नाम के रसोइये ने उन्ह

१७. धनदत्त राजा की कथा

देवादि के द्वारा पूज्य और अनन्तज्ञान, दर्शनादि आत्मीय श्री से विभूषित जिनभगवान् को नमस्कार कर मैं धनदत्त राजा की पवित्र कथा लिखता हूँ ॥१॥ अन्धदेशान्तर्गत कनकपुर नामक एक प्रसिद्ध और मनोहर शहर था। उसके राजा थे धनदत्त। वे सम्यग्दृष्टि थे, गुणवान् थे और धर्मप्रेमी थे। राजमंत्री का नाम श्रीवन्दक था । वह बौद्ध धर्मानुयायी था परन्तु तब भी राजा अपने मंत्री की सहायता से राजकार्य अच्छा चलाते थे। उन्हें किसी प्रकार की बाधा नहीं पहुँचती थी ॥२-३॥ एक दिन राजा और मंत्री राजमहल के ऊपर बैठे हुए कुछ राज

१६. पवित्र हृदय वाले एक बालक की कथा

बालक जैसा देखता है, वैसा ही कह भी देता है क्योंकि उसका हृदय पवित्र रहता है । यहाँ मैं जिनभगवान् को नमस्कार कर एक ऐसी ही कथा लिखता हूँ, जिसे पढ़कर सर्व साधारण का ध्यान पापकर्मों के छोड़ने की ओर जाये॥१॥ कौशाम्बी में जयपाल नाम के राजा हो गए हैं। उनके समय में वहीं एक सेठ हुआ है। उसका नाम समुद्रदत्त था और उसकी स्त्री का नाम समुद्रदत्ता । उसके एक पुत्र हुआ। उसका नाम सागरदत्त था। वह बहुत ही सुन्दर था । उसे देखकर सबका चित्त उसे खिलाने के लिए व्यग्र हो उठता था। समुद्रदत्त का एक गोपायन नाम का पड़ोसी

१५. शिवभूति पुरोहित की कथा  (कुसंगति के फल की कथा)

मैं संसार के हित करने वाले जिनभगवान् को नमस्कार कर दुर्जनों की संगति से जो दोष उत्पन्न होते हैं, उससे सम्बन्ध रखने वाली एक कथा लिखता हूँ, जिससे कि लोग दुर्जनों की संगति छोड़ने का यत्न करें ॥१॥ यह कथा उस समय की है, जब कि कौशाम्बी का राजा धनपाल था। धनपाल अच्छा बुद्धिमान् और प्रजाहितैषी था। शत्रु तो उसका नाम सुनकर काँपते थे । राजा के यहाँ एक पुरोहित था। उसका नाम था शिवभूति। वह पौराणिक अच्छा था ॥२-३॥ वहीं दो शूद्र रहते थे। उनके नाम कल्पपाल और पूर्णचन्द्र थे। उनके पास कुछ धन भी था। उनमें पू

१४. नागदत्त मुनि की कथा

मोक्ष राज्य के अधीश्वर श्रीपंच परम गुरु को नमस्कार कर श्री नागदत्त मुनि का सुन्दर चरित मैं लिखता हूँ ॥१॥ मगधदेश की प्रसिद्ध राजधानी राजगृह में प्रजापाल नाम के राजा थे। वे विद्वान् थे, उदार थे, धर्मात्मा थे, जिनभगवान् के भक्त थे और नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करते थे । उनकी रानी का नाम था प्रियधर्मा वह भी बड़ी सरल स्वभाव की सुशील थी । उसके दो पुत्र हुए । उनके नाम थे प्रियधर्म और प्रियमित्र। दोनों भाई बड़े बुद्धिमान् और सुचरित थे ॥२-४॥ किसी कारण से दोनों भाई संसार से विरक्त होकर साधु बन गए

१३. वज्रकुमार की कथा

संसार के परम गुरु जिनभगवान् को नमस्कार कर मैं प्रभावना अंग के पालन करने वाले श्री वज्रकुमार मुनि की कथा लिखता हूँ ॥१॥ जिस समय की यह कथा है, उस समय हस्तिनापुर के राजा थे बल। वह राजनीति के अच्छे विद्वान् थे, बड़े तेजस्वी थे और दयालु थे । उनके मंत्री का नाम था गरुड़ । उसका एक पुत्र था। उनका नाम सोमदत्त था। वह सब शास्त्रों का विद्वान् था और सुन्दर भी बहुत था । उसे देखकर सब को बड़ा आनन्द होता था। एक दिन सोमदत्त अपने मामा सुभूति के यहाँ गया, जो कि अहिच्छत्रपुर में रहता था। उसने मामा से विनयपूर्वक

१२. विष्णुकुमार मुनि की कथा

अनन्त सुख प्रदान करने वाले जिनभगवान् जिनवाणी और जैन साधुओं को नमस्कार कर मैं वात्सल्य अंग के पालन करने वाले श्री विष्णुकुमार मुनिराज की कथा लिखता हूँ ॥१॥ अवन्तिदेश के अन्तर्गत उज्जयिनी बहुत सुन्दर और प्रसिद्ध नगरी है । जिस समय का यह उपाख्यान है, उस समय उसके राजा श्रीवर्मा थे । वे बड़े धर्मात्मा थे, सब शास्त्रों के अच्छे विद्वान् थे, विचारशील थे, और अच्छे शूरवीर थे। वे दुराचारियों को उचित दण्ड देते और प्रजा का नीति के साथ पालन करते। सुतरां प्रजा उनकी बड़ी भक्त थी ॥२-३॥ उनकी महारानी का न

११. वारिषेण मुनि की कथा

मैं संसारपूज्य जिनभगवान् को नमस्कार कर श्रीवारिषेण मुनि की कथा लिखता हूँ, जिन्होंने सम्यग्दर्शन के स्थितिकरण नामक अंग का पालन किया है। अपनी सम्पदा से स्वर्ग को नीचा दिखाने वाले मगधदेश के अन्तर्गत राजगृह नाम का एक सुन्दर शहर था। उसके राजा थे श्रेणिक । वे सम्यग्दृष्टि थे, उदार थे और राजनीति के अच्छे विद्वान् थे। उनकी महारानी का नाम चेलना था। वह भी सम्यक्त्वरूपी अमोल रत्न से भूषित थी, बड़ी धर्मात्मा, सती और विदुषी थी । उसके एक पुत्र था। उसका नाम था वारिषेण । वारिषेण बहुत गुणी था, धर्मात्मा श्रावक थ

१०. जिनेन्द्रभक्त की कथा

स्वर्ग-मोक्ष के देने वाले श्रीजिनभगवान् को नमस्कार कर मैं जिनेन्द्रभक्त की कथा लिखता हूँ, जिन्होंने कि सम्यग्दर्शन के उपगूहन अंग का पालन किया था ॥१॥ नेमिनाथ भगवान् के जन्म से पवित्र और दयालु पुरुषों से परिपूर्ण सौराष्ट्र देश के अन्तर्गत एक पाटलिपुत्र नाम का शहर था । जिस समय की कथा है, उस समय वहाँ के राजा यशोध्वज थे। उनकी रानी का नाम सुसीमा था । वह बड़ी सुन्दर थी । उसके एक पुत्र था। उसका नाम था सुवीर । बेचारी सुसीमा के पाप के उदय से वह महाव्यसनी और चोर हुआ। सच तो यह है जिन्हें आगे कुयोनियों

९. रेवती रानी की कथा

संसार का हित करने वाले जिनभगवान् को परम भक्तिपूर्वक नमस्कार कर अमूढदृष्टि अंग का पालन करने वाली रेवती रानी की कथा लिखता हूँ । विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में मेघकूट नाम का एक सुन्दर शहर है। उसके राजा हैं चन्द्रप्रभ। चन्द्रप्रभ ने बहुत दिनों तक सुख के साथ अपना राज्य किया। एक दिन वे बैठे हुए थे कि एकाएक उन्हें तीर्थयात्रा करने की इच्छा हुई। राज्य का कारोबार अपने चन्द्रशेखर नाम के पुत्र को सौंपकर वे तीर्थयात्रा के लिए चल दिये। वे यात्रा करते हुए दक्षिण मथुरा में आये। उन्हें पुण्य से वहाँ गुप्ता

८. उदयन राजा की कथा

संसार-श्रेष्ठ जिनभगवान्, जिनवाणी और जैन ऋषियों को नमस्कार कर उदयन राजा की कथा लिखता हूँ, जिन्होंने सम्यक्त्व के तीसरे निर्विचिकित्सा अंग का पालन किया है ॥१॥ उड्वायन रौरवक नामक शहर के राजा थे, जो कि कच्छदेश के अन्तर्गत था। उड्वायन सम्यग्दृष्टि थे, दानी थे, विचारशील थे, जिनभगवान् के सच्चे भक्त थे और न्यायी थे । सुतरां प्रजा का उन पर बहुत प्रेम था और वे भी प्रजा के हित में सदा उद्यत रहा करते थे ॥२-३॥ उसकी रानी का नाम प्रभावती था। वह भी सती थी, धर्मात्मा थी । उसका मन सदा पवित्र रहता था। वह

७. अनन्तमती की कथा

मोक सुख के देने वाले श्री अरिहन्त भगवान् के चरणों को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर अनन्तमती की कथा लिखता हूँ, जिसके द्वारा सम्यग्दर्शन के निःकांक्षित गुण का प्रकाश हुआ है ॥१॥ संसार में अंगदेश बहुत प्रसिद्ध देश है। जिस समय की हम कथा लिखते हैं, उस समय उसकी प्रधान राजधानी चंपापुरी थी। उसके राजा थे वसुवर्धन और उनकी रानी का नाम लक्ष्मीमती था। वह सती थी, गुणवती थी और बड़ी सरल स्वभाव की थी। उनके एक पुत्र था। उसका नाम था प्रियदत्त । प्रियदत्त को जिनधर्म पर पूर्ण श्रद्धा थी । उसकी गृहिणी का नाम अंगवती था। वह

६. अंजनचोर की कथा

Listen to अंजनचोर की कथा byआचार्य श्री विद्यासागर on hearthis.at   सुख के देने वाले श्रीसर्वज्ञ वीतराग भगवान् के चरण कमलों को नमस्कार कर अंजनचोर की कथा लिखता है, जिसने सम्यग्दर्शन के निःशंकित अंग का उद्योत किया है ॥१॥ भारतवर्ष-मगधदेश के अन्तर्गत राजगृह नामक शहर में एक जिनदत्त सेठ रहता था। वह बड़ा धर्मात्मा था। वह निरन्तर जिनभगवान् की पूजा करता, दीन-दुखियों को दान देता, श्रावकों के व्रतों का पालन करता और सदा शान्त और विषयभोगों से विरक्त रहता । एक दिन जिनदत्त चतुर्दशी के दिन आधी रात

५. संजयन्त मुनि की कथा

सुख के देने वाले श्री जिन भगवान् के चरण कमलों को नमस्कार कर श्रीसंजयन्त मुनिराज की कथा लिखता हूँ, जिन्होंने सम्यक् तप का उद्योत किया था । सुमेरु के पश्चिम की ओर विदेह के अन्तर्गत गन्धमालिनी नाम का देश है। उसकी प्रधान राजधानी वीतशोकपुर है। जिस समय की बात हम लिख रहे हैं, उस समय उसके राजा वैजयन्त थे । उनकी महारानी का नाम भव्य श्री था । उनके दो पुत्र थे। उनके नाम थे संजयन्त और जयन्त ॥१-५॥पीठ एक दिन की बात है कि बिजली के गिरने से महाराज वैजयन्त का प्रधान हाथी मर गया। यह देख उन्हें संसार से बड़ा

४. समन्तभद्राचार्य की कथा

संसार के द्वारा पूज्य और सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान का उद्योत करने वाले श्री जिन भगवान् को नमस्कार कर श्री समन्तभद्राचार्य की पवित्र कथा लिखता हूँ, जो कि सम्यक्चारित्र की प्रकाशक है ॥१॥ भगवान् समन्तभद्र का पवित्र जन्म दक्षिणप्रान्त के अन्तर्गत कांची नाम की नगरी में हुआ था। वे बड़े तत्त्वज्ञानी और न्याय, व्याकरण, साहित्य आदि विषयों के भी बड़े भारी विद्वान् थे। संसार में उनकी बहुत ख्याति थी। वे कठिन से कठिन चारित्र का पालन करते, दुस्सह तप तपते और बड़े आनन्द से अपना समय आत्मानुभव, पठन-पाठन, ग

३. सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा

स्वर्ग और मोक्ष सुख के देने वाले श्री अर्हंत , सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं को नमस्कार करके मैं सम्यक् चारित्र का उद्योत करने वाले चौथे सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा लिखता हूँ ॥१॥ अनन्तवीर्य भारतवर्ष के अन्तर्गत वीतशोक नामक शहर के राजा थे। उनकी महारानी का नाम सीता था। हमारे चरित्रनायक सनत्कुमार इन्हीं के पुण्य के फल थे। वे चक्रवर्ती थे। सम्यग्दृष्टियों में प्रधान थे। उन्होंने छहों खण्ड पृथ्वी अपने वश में कर ली थी। उनकी विभूति का प्रमाण ऋषियों ने इस प्रकार लिखा है-नवनिधि, चौदहरत्न, चौरासी

२. भट्टाकलंकदेव की कथा

मैं जीवों को सुख के देने वाले जिनभगवान् को नमस्कार करके इस अध्याय में भट्टाकलंकदेव की कथा लिखता हूँ, जो कि सम्यग्ज्ञान का उद्योत करने वाली है ॥१॥ भारतवर्ष में एक मान्यखेट नाम का नगर था। उसके राजा थे शुभतुंग और उनके मंत्री का नाम पुरुषोत्तम था। पुरुषोत्तम की गृहिणी पद्मावती थी। उसके दो पुत्र हुए। उनके नाम थे अकलंक और निकलंक। वे दोनों भाई बड़े बुद्धिमान् गुणी थे ॥२-३॥ एक दिन की बात है कि अष्टाह्निका पर्व की अष्टमी के दिन पुरुषोत्तम और उसकी गृहिणी बड़ी विभूति के साथ चित्रगुप्त मुनिराज की

१. पात्रकेसरी की कथा

पात्रकेसरी आचार्य ने सम्यग्दर्शन का उद्योत किया था । उनका चरित मैं कहता हूँ, वह सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का कारण है ॥१६॥ भगवान् के पंचकल्याणकों से पवित्र और सब जीवों को सुख के देने वाले इस भारतवर्ष में एक मगध नाम का देश है । वह संसार के श्रेष्ठ वैभव का स्थान है। उसके अन्तर्गत एक अहिछत्र नाम का सुन्दर शहर है। उसकी सुन्दरता संसार को चकित करने वाली है ॥१७-१८॥ नगरवासियों के पुण्य से उसका अवनिपाल नाम का राजा बड़ा गुणी था, सब राजविद्याओं का पण्डित था। अपने राज्य का पालन वह अच्छी नीति के साथ क

आत्म चेतना ही व्यक्ति की सबसे बडी शक्ति है।

शुभ प्रभात🙏🙏आज का सुविचार- आत्म चेतना ही व्यक्ति की सबसे बडी शक्ति है। जब हवा काम नहीं करती तब दवा काम करती है और जब दवा काम नहीं करती  तब दुआ काम करती है परन्तु जब दुआ भी काम नहीं करती तब यह जो स्वयंभुवा चेतना है काम करती है। मात्र आत्म चेतना जागृत होने पर हवा, दुआ और दवा अपने आस पास स्वयं चक्कर काटती रहती है। आत्म जागरण के अभाव में व्यक्ति इन तीनो के पीछे चक्कर काटता रहता है। 🙏🙏मूकमाटी पृष्ठ सं 240
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