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(सीता): नारी के दुःखों का कारण राग, क्रोध एवं मान

सीता पउमचरिउ काव्य के नायक राम की पत्नी के रूप में पउमचरिउकाव्य की प्रमुख नायिका हैं। यह नायिका भारतीय स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है। सीता के जीवन चरित्र के माध्यम से स्त्री के मन के विभिन्न आयाम प्रकट होंगे जिससे स्त्री की मूल प्रकृति को समझने में आसानी होगी। ब्लाग 5 में राम के जीवन चरित्र के माध्यम से हम पुरुष के मूल स्वभाव से परिचित हुए थे। देखा जाय तो अच्छा जीवन जीने के लिए सर्वप्रथम स्त्री और पुरुष दोनों के मूल स्वभाव की जानकारी आवश्यक है। रामकाव्यकारों का रामकथा को लिखने का सर्वप्रमुख उद्

Sneh Jain

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Ṇamokāra Mantra

ṆAMO ARIHANTĀṆAM,ṆAMO SIDDHĀṆAM,ṆAMO ĀVARIVĀṆAM,ṆAMO UVAJJHĀYĀṆAM,ṆAMO LOE SAVVA SĀHŪṆAM   Daughter: Ma, we recite the Ṇamokāra-Mantra daily; what is Namokāra-Mantra? Please tell us. Mother:  ṆAMOKĀRA-MANTRA is a prayer of  virtues. We Jainas worship Arihanta, Siddha, Ācārya, Upādhyaya and Sadhu, by reciting Ṇamokāra-Mantra. They are known as " PAÑCA ­PARAMESTHI". Actually Ṇamokāra-Mantra is a reverence ­Mantra. Daughter: Ma, what do we gain by reverence to Pañca-Paramesthī? Mother:  Jainas w

Arpana Jain

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पीठ का दर्शन - अमृत माँ जिनवाणी से - १२१

?  अमृत माँ जिनवाणी से - १२१  ?                   "पीठ का दर्शन"             एक-एक व्यक्ति ने पंक्ति बनाकर बड़े व्यवस्थित ढंग से तथा शांतिपूर्वक क्षपकराज पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के दर्शन किये। महाराज तो आत्मध्यान में निमग्न रहते थे। वास्तव में ऐसा दिखता था कि मानो वे लेटे-लेटे सामायिक कर रहे हों। बात यथार्थ में भी यही थी।          जब मै (लेखक) पर्वत पर पहुँचा, तब महाराज करवट बदल चुके थे, इससे उनकी पीठ ही दिखाई पड़ी। मैंने सोचा- "सचमुच में अब हमे महाराज की पीठ ही त

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कैकेयी: संवेदना अर्थात् करुणा रहित मन एक अपयश भरा जीवन

इससे पूर्व हमने रामकथा के इक्ष्वाकुवंश के प्रमुख पात्रों के जीवन चरित्र को देखने का प्रयास किया तथा उसके माध्यम से मानव मन के विभिन्न आयाम भी हमारे समक्ष उभरकर आये। हमने उसमें मुख्य बात यह देखी कि मानव का मन विभिन्न भावों से पूरित तो है ही साथ ही निरन्तर परिवर्तनशील भी है। यह मन ही तो है जो अपनी मति को संचालित करता है, और फिर जैसी मनुष्य की गति होती है, वैसी ही उसकी मति होती है। इसीलिए संतों एवं धर्माचार्यों ने इन्द्रियों एवं मति को नियन्त्रण करने हेतु कहा है। इस ही कडी में पउमचरिउ के आधार पर हम

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अंतिम दर्शन - अमृत माँ जिनवाणी से - १२०

?  अमृत माँ जिनवाणी से - १२०  ?                  "अंतिम दर्शन"            पिछले प्रसंग में देखा दूर-२ से लोग अहिंसा के श्रेष्ठ आराधक के दर्शनार्थ आ रहे थे। उस समय जनता में अपार क्षोभ बढ़ रहा था।               कुछ बेचारे दुखी ह्रदय से लौट गए और कुछ इस आशा से कि शायद आगे दर्शन मिल जाएँ ठहरे रहे। अंत में सत्रह सितम्बर को सुबह महाराज के दर्शन सब को मिलेंगे, ऐसी सूचना तारीख १६ की रात्री को लोगों को मिली।             बड़े व्यवस्थित ढंग से तथा शांतिपूर्वक एक-एक व्यक्ति की पंक्ति

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अपराजिता : जैसी समझ - वैसा ही जीवन

अभी हमने राम कथा से सम्बन्धित इक्ष्वाकुवंश के राजा दशरथ के परिवार के प्रमुख-प्रमुख पुरुषों का जीवन देखा। उनके जीवन चरित्र के आधार पर उनके जीवन में आये सुख-दःुख के कारणों पर कुछ प्रकाश पड़ा। इनके चरित्र से तादात्म स्थापित कर यदि हम देखें तो हम पायेंगे कि हमारे सुख-दुःख के भी यही कारण हैं। अब हम आगे प्रकाश डालते हैं, इक्ष्वाकुवंश के राजा दशरथ के परिवार की प्रमुख महिलाओं के जीवन पर। सबसे पहले देखते हैं राजा दशरथ की सबसे बडी रानी कौशल्या जिनका जैन रामकथा में अपराजिता नाम मिलता है।   अपराजिता रामकथा क

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चिंतपूर्ण शरीर स्थिति - अमृत माँ जिनवाणी से - ११९

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११९  ?              "चिंतापूर्ण शरीर स्थिति"               तारीख १३ सितम्बर को सल्लेखना का ३१ वां दिन था। उस दिन आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के शरीर की स्थिति बहुत ही चिंताजनक हो गई और ऐसा लगने लगा कि अब इस आध्यात्मिक सूर्य के अस्तंगत होने में तनिक भी देर नहीं है।          यह सूर्य अब क्षितिज को स्पर्श कर चूका है। भूतल पर से आपका दर्शन लोगों को नहीं होता; हाँ शैल शिखर से उस सूर्य की कुछ-२ ज्योति दिखाई पड़ रही है। उस समय महाराज की स्थिति अद्भुत थी।

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लवण व अंकुश - इनके माध्यम से देखते हैं पुरुष प्रधान समाज की जीती जागती तस्वीर

राम-सीता के पुत्र लवण व अंकुश के चरित्र के माध्यम से हम यहाँ मात्र यही देखेंगे कि भारतीय संस्कृति में पुत्रों की माँ और पिता के जीवन में क्या भूमिका होती है ? और माँ के दुःखों का कारण क्या है ? इसको पढने के बाद शायद सभी इस पर गंभीरता से विचार करेंगे। राम के द्वारा गर्भवती सीता को निर्वासन दिया जाने के कारण लवण व अंकुश का जन्म तथा लालन-पालन वज्रजंघ राजा के पुण्डरीक नगर में हुआ। सभी कलाओं में निष्णता प्राप्त करने के बाद युवावस्था प्राप्त होने पर पराक्रमी लवण व अंकुश ने खस, सव्वर, बव्वर, टक्क, कीर,

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तेजपुंज शरीर - अमृत माँ जिनवाणी से - ११८

?     अमृत माँ जिनवाणी से - ११८    ?                    "तेजपुञ्ज शरीर"               पूज्य शान्तिसागरजी महाराज का शरीर आत्मतेज का अद्भुत पुञ्ज दिखता था। ३० से भी अधिक उपवास होने पर देखने वालों को ऐसा लगता था, मानों महाराज ने ५ - १० उपवास किये हों। उनके दर्शन से जड़वादी मानव के मन में आत्मबल की प्रतिष्ठा अंकित हुए बिना नहीं रहती थी।          देशभूषण-कुलभूषण भगवान के अभिषेक का जब उन्होंने अंतिम बार दर्शन किया था, उस दिन शुभोदय से महाराज के ठीक पीछे मुझे (लेखक को) खड़े होने का स

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लक्ष्मण प्रशंसा एक ऐसी चीज है जिससे बड़े-योगी भी नहीं बच पाते। निन्दा की आँच जिसे जला भी नहीं सकती, प्रशंसा की छाँव उसे छार-छार कर देती है।

लक्ष्मण   प्रशंसा एक ऐसी चीज है जिससे बड़े-योगी भी नहीं बच पाते।  निन्दा की आँच जिसे जला भी नहीं सकती, प्रशंसा की छाँव उसे छार-छार कर देती है।   लक्ष्मण राजा दशरथ व उनकी रानी सुमित्रा के पुत्र तथा काव्य के नायक राम के छोटे भाई हंै। राम व लक्ष्मण के विषय में स्वयंभू कहते हैं - एक्कु पवणु अण्णेक्कु हुआसणु, एक पवन था, तो दूसरा आग।  सुन्दर व आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लक्ष्मण के जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाएँ काव्य में इस प्रकार हैं- सुन्दर व आकर्षक तथा कला प्रिय लक्ष्मण के व्यक्तित्व में इतना आकर्षण थ

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लक्ष्मण प्रशंसा एक ऐसी चीज है जिससे बड़े-योगी भी नहीं बच पाते। निन्दा की आँच जिसे जला भी नहीं सकती, प्रशंसा की छाँव उसे छार-छार कर देती है।

लक्ष्मण   प्रशंसा एक ऐसी चीज है जिससे बड़े-योगी भी नहीं बच पाते।  निन्दा की आँच जिसे जला भी नहीं सकती, प्रशंसा की छाँव उसे छार-छार कर देती है।   लक्ष्मण राजा दशरथ व उनकी रानी सुमित्रा के पुत्र तथा काव्य के नायक राम के छोटे भाई हंै। राम व लक्ष्मण के विषय में स्वयंभू कहते हैं - एक्कु पवणु अण्णेक्कु हुआसणु, एक पवन था, तो दूसरा आग।  सुन्दर व आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लक्ष्मण के जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाएँ काव्य में इस प्रकार हैं- सुन्दर व आकर्षक तथा कला प्रिय लक्ष्मण के व्यक्तित्व में इतना आकर्षण थ

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जिनेश्वर के लघुनंदन - अमृत माँ जिनवाणी से - ११७

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११७   ?              "जिनेश्वर के लघुनंदन"               संसार मृत्यु के नाम से घबड़ाता है और उसके भय से नीच से नीच कार्य करने को तत्पर हो जाता है, किन्तु शान्तिसागरजी महाराज मृत्यु को चुनौती दे, उससे युद्ध करते हुए जिनेश्वर के नंदन के समान शोभायमान होते थे।          जैन शास्त्र कहते हैं कि मृत्यु विजेता बनने के लिए मुमुक्षु को मृत्यु के भय का परित्याग कर उसे मित्र सदृश मानना चाहिए। इसी मर्म को हृदयस्थ करने के कारण आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने अ

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आत्मबल का प्रभाव - अमृत माँ जिनवाणी से - ११६

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११६   ?                 "आत्मबल का प्रभाव"                पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज की शरीर रूपी गाड़ी तो पूर्णतः शक्तिशून्य हो चुकी थी, केवल आत्मा का बल शरीर को खीच रहा था।               यह आत्मा का ही बल था, जो सल्लेखना के २६ वें दिन ८ सितम्बर को सायंकाल के समय उन सधुराज ने २२ मिनिट पर्यन्त लोककल्याण के लिए अपना अमर सन्देश दिया, जिससे विश्व के प्रत्येक शांतिप्रेमी को प्रकाश और प्रेरणा प्राप्त होती है। ?  २८ वां दिन - १० सितम्बर

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शरीर के प्रति घारणा - अमृत माँ जिनवाणी से - ११५

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११५   ?                "शरीर के प्रति धारणा"           अन्न के द्वारा जिस देह का पोषण होता है, वह अनात्मा (आत्मा रहित) रूप है। इस बात को सभी लोग जानते हैं। परंतु इस पर विश्वास नहीं है।        पूज्य शान्तिसागरजी महाराज ने कहा था- "अनंत काला पासून जीव पुद्गल दोन्ही भिन्न आहे। हे सर्व जग जाणतो, परंतु विश्वास नहीं।"        उनका यह कथन भी था तथा तदनुसार उनकी दृढ़ धारणा थी कि- "जीव का पक्ष लेने पर पुद्गल का घात होता है और पुद्गल का पक्ष लेने पर जीव का

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भरत

भरत पूर्व में राम के कथानक के माध्यम से स्वयंभू यही संदेष देना चाहते है कि प्रत्येक गृहस्थ व्यक्ति को अपने जीवन में सर्वप्रथम अपनी प्राथमिकताएँ निर्धारित करना चाहिए। प्राथमिकता पूरी होने के बाद आगे बढना चाहिए। इससे जीवन बहुत कम संघर्ष के आगे बढता है। राम की सबसे पहली प्राथमिकता उसकी माँ कौषल्या तथा पत्नी सीता होती है। आज भी यदि प्रत्येक व्यक्ति इस प्राथमिकता पर विचार कर इसको क्रियान्वित करने का प्रयास करे, तो एक षान्त और सुखी भारत का सपना साकार हो सकता है। इसी प्रकार हम स्वयंभू द्वारा रचित पउमचर

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आगम का सार - अमृत माँ जिनवाणी से - ११४

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११४   ?                 "आगम का सार"               पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने सल्लेखना के२६ वे दिन के अमर सन्देश में कहा था- "जीव एकला आहे, एकला आहे ! जीवाचा कोणी नांही रे बाबा ! कोणी नाही.(जीव अकेला है,अकेला है। जीव का कोई नहीं बाबा, कोई नहीं है।)"         इसके सिवाय गुरुदेव के ये बोल अनमोल रहे- "जीवाचा पक्ष घेतला तर पुद्गलाचा घात होतो। पुद्गलाचा पक्ष घेतला तर जीवाचा घात होतो। परंतु मोक्षचा जाणारा जीव हा एकलाच आहे पुद्गल नहीं( जीव का प

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राम

इससे पूर्व हमने दशरथ के चरित्र चित्रण के माध्यम से देखा कि अज्ञान अवस्था में रागभाव से की गयी मात्र एक गलती घर-परिवारजनों के लिए कितना संकट उत्पन्न कर देती है ? एक राग के कारण दशरथ अपनी पहली पत्नी कौशल्या के प्रति इतना संवेदनहीन हो गये कि वे यह भी विचार नहीं कर पाये कि कैकेयी की बात मानने से कौशल्या के मन पर क्या असर होगा। सारा परिवार किस प्रकार छिन्न भिन्न हो जायेगा। रागवश मनुष्य की मति संवेदनहीन हो जाती है। अब आगे हम राम के चरित्र के माध्यम से देखेंगे कि वह एक संकट आगे पुनः कितने नये संकटों को

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सबकी शुभकामना - अमृत माँ जिनवाणी से - ११३

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११३   ?              "सबकी शुभकामना"               पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज वास्तव में लोकोत्तर महात्मा थे। विरोधी व विपक्षी के प्रति भी उनके मन मे सद्भावना रहती थी। एक दिन मैंने कहा- "महाराज ! मुझे आशीर्वाद दीजिये, ऐसी प्रार्थना है।             महाराज ने कहा था- "तुम ही क्यों जो भी धर्म पर चलता है, उसके लिए हमारा आशीर्वाद है कि वह सद्बुद्धि प्राप्त कर आत्मकल्याण करे।" ?पच्चीसवाँ दिन - ७ सितम्बर११५५?                  सल्लेखना

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लोक कल्याण की उमंग - अमृत माँ जिनवाणी से - ११२

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११२   ?              "लोककल्याण की उमंग"                     कुंभोज बाहुबली क्षेत्र पर आचार्यश्री पहुँचे। उनके पवित्र ह्रदय में सहसा एक उमंग आई, कि इस क्षेत्र पर यदि बाहुबली भगवान की एक विशाल मूर्ति मिराजमान हो जाए, तो उससे आसपास के लाखों की संख्या वाले ग्रामीण जैन कृषक-वर्ग का बड़ा हित होगा। महाराज ने अपना मनोगत व्यक्त किया ही था, कि शीघ्र ही अर्थ का प्रबंध हो गया।          उस प्रसंग पर आचार्य महाराज ने ये मार्मिक उद्गार व्यक्त किये थे- "दक्षिण में

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अभिषेक दर्शन - अमृत माँ जिनवाणी से - १११

?   अमृत माँ जिनवाणी से - १११   ?                  "अभिषेक दर्शन"           मैंने देखा, कि महाराज एकाग्र चित्त हो जिनेन्द्र भगवान की छवि को ही देखते थे। इधर-उधर उनकी निगाह नहीं पड़ती थी। मुख से थके मादे व्यक्ति के सामान शब्द नहीं निकलता था। तत्वदृष्टि से विचार किया जाय, तो कहना होगा कि शरीर तो पोषक सामग्री के आभाव में शक्ति तथा सामर्थ्य रहित हो चुका था, किन्तु अनन्तशक्ति पुञ्ज आत्मा की सहायता उस शरीर को मिलती थी, इससे ही वह टिका हुआ था। और आत्मदेव की आराधना में सहायता करता था।

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?जल का भी त्याग - अमृत माँ जिनवाणी से - ११०

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११०   ?                "जल का भी त्याग"               पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की दो-तीन माह से शरीर से अत्यंत विमुख वृत्ति हो गई थी। दूरदर्शी तथा विवेकी साधु होने के कारण उन्होंने जल ग्रहण की छूट रखी थी,            "किन्तु चार सितम्बर को अंतिम बार जल लेकर उससे भी सम्बन्ध छोड़ दिया था।          जगत में बहुत से लोग उपवास करते हैं। वे कभी तो फलाहार करते है कभी रस ग्रहण करते हैं, कभी औषधि लेते हैं, इसके अतिरिक्त और भी प्रकार से शरीर को

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?मुनिबंधु को संदेश - अमृत माँ जिनवाणी से - १०९

?   अमृत माँ जिनवाणी से - १०९   ?                 "मुनिबन्धु को सन्देश"                     उस समय ९२ वर्ष की वय वाले मुनिबन्धु चरित्र चूड़ामणि श्री १०८ वर्धमान सागर महाराज के लिए पूज्यश्री ने सन्देश भेजा था कि- "अभी १२ वर्ष की सल्लेखना के ६-७ वर्ष तुम्हारे शेष हैं। अतः कोई गड़बड़ मत करना। जब तक शक्ति है तब तक आहार लेना। धीरज रखकर ध्यान किया करना।           हमारे अंत पर दुखी नहीं होना और परिणामों में विगाड मत लाना। शक्ति हो तो समीप में विहार करना। नहीं तो थोड़े दिन शेडवाल बस्ती

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आध्यात्मिक सूत्र - अमृत माँ जिनवाणी से - १०८

?   अमृत माँ जिनवाणी से - १०८   ?                 "आध्यात्मिक सूत्र"               एक दिन दिवाकरजी पूज्य क्षपकराज आचार्यश्री शान्तिसागरजी के सम्मुख आचार्य माघनन्दी रचित आध्यात्मिक सूत्रो को पढ़ने लगा।         उन्होंने कहा- "महाराज देखिये ! जिस आत्मस्वरुप के चिन्तवन में आप संलग्न हैं और जिसका स्वाद आप ले रहे हैं उसके विषय में आचार्य के सूत्र बड़े मधुर लगते है, चिदानंद स्वरूपोहम (मै चिदानंद स्वरुप हूँ), ज्ञानज्योति-स्वरूपोहम (मै ज्ञान ज्योति स्वरुप हूँ), शुद्धआत्मानुभूति-स्वरूपो

Abhishek Jain

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