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?दीर्घ जीवन का रहस्य - अमृत माँ जिनवाणी से - १६५

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १६५    ?                "दीर्घजीवन का रहस्य"         पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के योग्य शिष्य मुनि श्री १०८ वर्धमान सागरजी महराज जो गृहस्थ जीवन में पूज्य शान्तिसागरजी महराज के बड़े भ्राता भी थे तथा वर्तमान में ९२ वर्ष की अवस्था में भी व्यवस्थित मुनिचर्या का पालन कर रहे थे, ने प्रसंग वश बताया-          "संयमी जीवन दीर्घाआयु का विशेष कारण है। हम रात को ९ बजे के पूर्व सो जाते थे और तीन बजे सुबह जाग जाया करते थे। ३५ वर्ष की अवस्था में हमने ब्र

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मेरा अनुरोध

सभी ब्लाग पाठकों से मेरा अनुरोध है, वे ब्लाग के विषय में अपने विचारों से मुझे अवश्य अवगत करवाये। लेखक को लगना चाहिए कि क्या पाठकों की उसमें रुचि है ? इससे लेखक में उत्साह भी बढता है साथ ही वह पाठको की रुचि के अनुरूप परिवर्तन की बात भी सोचता है। आशा है आप सब शीध्र ही अपने सुझावों से अवगत करवाकर मुझे आगे भी लिखने में प्रोत्साहित करेंगे। रामकथा पर आधारित मात्र दो ब्लाग और हैं, इसके बाद विषय बदला जायेगा।

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(चन्द्रनखा के सन्दर्भ में ): चरित्र का सम्बन्ध स्वबोध पर आधारित

प्रायः यह कहा जाता है, पढ़ने में आता है, या देखा भी जाता है कि मनुष्य के वातावरण का उस पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। यह भी कहा जाता है कि 50 प्रतिशत गुण-दोष व्यक्ति में वंशानुगत होते हैं तथा प्रारम्भ में जो संस्कार उसको मिले वे आखिरी तक उस पर अपना प्रभाव बनाये रखते हैं। ये सब कथन काफी हद तक सही भी हैं। लेकिन जब हम रामकाव्य के पात्रों के जीवन को देखते हैं तो एक बात साफ उभरकर आती है कि कितना ही उपरोक्त कथन सही हो लेकिन जब व्यक्ति का स्वबोध जाग्रत होता है तो उपरोक्त सब बाते पीछे धरी रह जाती है और स

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?सतत अभ्यास का महत्व - अमृत माँ जिनवाणी से - १६४

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं, प्रस्तुत प्रसंग में पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज ने कितने सरल उदाहरण के माध्यम से बताया है कि लगातार किया जाने वाला इंद्रिय संयम का अभ्यास बेकार नहीं जाता, उसका भी महत्व अवश्य होता है। ?    अमृत माँ जिनवाणी से - १६४    ?             "सतत अभ्यास का महत्व"           पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज कहते थे-          "जिस प्रकार बार-बार रस्सी की रगड़ से कठोर पाषाण में गड्ढ़ा पड़ जाता है, उसी प्रकार बार-बार अभ्यास द्वारा इंद्रियाँ वसीभूत हो

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?ध्यान सूत्र - अमृत माँ जिनवाणी से - १६३

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १६३    ?                      "ध्यान सूत्र"       प्रश्न - महराज ! कृप्याकर बताइये, क्या आपका मन लगातार आत्मा में स्थिर रहता है या अन्यत्र भी जाता है?"      उत्तर - पूज्य शान्तिसागरजी महराज ने कहा- "हम आत्मचिंतन करते हैं। कुछ समय के बाद जब ध्यान छूटता है, तब मन को फिर आत्मा की ओर लगाते हैं।        कभी-कभी मोक्षगामी त्रेसठ शलाका पुरुषों का चिंतवन करता हूँ।" ?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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(मन्दोदरी के सन्दर्भ में) अज्ञान जनित राग व भय दुःख व अशान्ति का कारण

यह संसार एक इन्द्रिय प्राणी से लेकर पाँच इन्द्रिय प्राणियों से खचाखच भरा हुआ है। इन सब प्राणियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है। मनुष्य की भी दो जातिया हैं - एक स्त्री और दूसरा पुरुष। सारा संसार मात्र इस स्त्री व पुरुष की क्रिया से नियन्त्रित है।संसार का अच्छा या बुरा स्वरूप इन दो जातियों पर ही टिका हुआ है। संसार में जब-जब भी दुःख व अशान्ति ने जन्म लिया तब- तब ही इन दोनों जातियों में उत्पन्न हुए करुणावान प्राणियों में ज्ञान का उद्भव हुआ और उन्होंने उस करुणा से उत्पन्न ज्ञान के सह

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?रुद्रप्पा की समाधि -१ - अमृत माँ जिनवाणी से - १६२

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,            प्रस्तुत प्रसंग से ज्ञात होता है कि किस प्रकार पूज्य शान्तिसागरजी महराज ने गृहस्थ अवस्था में ही उस समय की प्लेग जैसी भयंकर महामारी के संक्रमण की परवाह ना करते हुए अपने मित्र रुद्रप्पा का समाधिमरण कराया। अजैन व्यक्ति की भी समाधि करवाने उनके संस्कार जन्म जन्मान्तर की उत्कृष्ट साधना के परिचायक है।        हमेशा अपने जीवन में हम सभी को अच्छे लोगो की संगति रखना चाहिए क्योंकि रुद्रप्पा जैसा हम लोगों के लिए सातगौड़ा (शान्तिसागर महराज) जैसे मित्र बुराइयों से बचात

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?रुद्रप्पा की समाधि - अमृत माँ जिनवाणी से - १६१

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १६१    ?               "रुद्रप्पा की समाधि"          पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई, वर्तमान के मुनि श्री १०८ वर्धमान सागरजी महराज ने शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ अवस्था के मित्र लिंगायत धर्मावलंबी श्रीमंत रुद्रप्पा की बात सुनाई।         सत्यव्रती रुद्रप्पा वेदांत का बड़ा पंडित था। वह अत्यंत निष्कलंक व्यक्ति था। वह अपने घर में किसी से बात न कर दिन भर मौन बैठता था। कभी-कभी हमारे घर आकर आचार्य महराज से तत्वचर्चा करता और

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?संयमी का महत्व - अमृत माँ जिनवाणी से - १६०

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १६०    ?                  "संयमी का महत्व"       संयमी पुरुषों की दृष्टि में संयम तथा संयमी का मूल्य रहा है। पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज को भी संयम व् संयमी का बड़ा मूल्य रहा है।        एक दिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज अपने क्षुल्लक शिष्य सिद्धसागर (भरमप्पा) से कह रहे थे- तेरे सामने मै चक्रवर्ती की भी कीमत नहीं करता। लोग संयम का मूल्य समझते नहीं हैं।                जो पेट के लिए भी दीक्षा लेते हैं, वे तप के प्रभाव से स्वर्ग जाते हैं, तून

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(रावणपुत्र अक्षयकुमार के सन्दर्भ में) कथनी और करनी में भेद

रावण का दूसरा पुत्र अक्षयकुमार भी बहुत पराक्रमी एवं विद्याधारी था। अक्षय कुमार व हनुमान के मध्य हुए युद्ध में प्रारम्भ में हनुमान भी उसे नहीं जीत सका। हनुमान ने भी प्रारंभ में उसकी स्फूर्ति की प्रशंसा करते हुए कहा कि देवता भी जिसकी गति का पार नहीं पा सकते उसके साथ मैं कैसे युद्ध करूँ। अक्षयकुमार ने अपनी अक्षयविद्या से अनन्त सेना उत्पन्न कर दी, किन्तु अन्त में वह हनुमान के शस्त्रों से मारा गया। अक्षयकुमार की एक छोटी सी घटना के माध्यम से हम यह देखेंगे कि अक्षयकुमार के समान इस संसार में कितने लोग ह

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(रावणपुत्र इन्द्रजीत के सन्दर्भ में) अज्ञानी व्यक्ति की संगति हानिप्रद है चाहे वह पुत्र ही हो

हम सब भली भाँति समझते है कि मनुष्य जीवन में संगति और आस-पास के वातावरण का बहुत महत्व है। यह भी सच है कि मनुष्य की संगति और उसके वातावरण का सम्बन्ध उसके जन्म लेने से है, जिस पर कि उसका प्रत्यक्ष रूप से कोई अधिकार नहीं। जहाँ मनुष्य जन्म लेगा प्रारम्भ में वही स्थान उसका वातावरण होगा और वहाँ पर निवास करने वालों के साथ उसकी संगति होगी। यही कारण है कि बच्चे पर अधिकांश प्रभाव उसके माता-पिता, भाई- बहिन और यदि संयुक्त परिवार हो तो दादा-दादी और चाचा- चाची का होता है। कईं बार तो बच्चा जिसके सम्पर्क में ज्य

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?शिष्यों को हितोपदेश - अमृत माँ जिनवाणी से - १५९

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,                            प्रस्तुत प्रसंग में पूज्य शान्तिसागरजी महराज एक गृहस्थ श्रावक को संबोधित कर रहे हैं। हम सभी यह पढ़कर यह अनुभव कर सकते है कि आचार्यश्री हम सभी को ही व्यक्तिगत रूप से यह बातें कह रहे हैं।             वास्तव में पूज्यश्री की यह देशना भी सभी श्रद्धावान श्रावकों के लिए ही है। ?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५९    ?                   "शिष्य को हितोपदेश"                       एक बार पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज अपने एक भक

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(विभीषण के सन्दर्भ में) : व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए गुणानुरागी होना आवश्यक

व्यक्ति और समाज का परष्पर अटूट सम्बन्ध है। समाज के बिना व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है, तथा व्यक्तियों से मिलकर ही समाज का निर्माण होता है। इस तरह व्यक्ति समाज की एक इकाई है। इस प्रत्येक इकाई का अपना निजी महत्व है। मनुष्य के अकेले जन्म लेने और अकेले मरण को प्राप्त होने से व्यक्ति की व्यक्तिगत महत्ता का आकलन किया जा सकता है। संसार में भाँति भाँति के मनुष्य हैं, उन सबकी भिन्न- भिन्न विशेषताएँ हैं। अपने आसपास के वातावरण, संगति तथा अपनी बदलती शारीरिक अवस्था के प्रभाव से व्यक्ति का व्यक्तित्व भी निर

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?सच्चा आध्यात्मवाद - अमृत माँ जिनवाणी से - १५८

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,               प्रस्तुत प्रसंग, हम सभी श्रावकों अपने जीवन के सार्थकता हेतु आत्मध्यान के बारे में बताता है।          एक लंबे समय से प्रसंगों की श्रृंखला के माध्यम से हम सभी पूज्य शान्तिसागरजी महराज के जीवन चरित्र का दर्शन इस अनुभिति के साथ कर रहे हैं कि उनके जीवन को हम नजदीक से ही देख रहे हों।        आज के आत्मध्यान के पूज्यश्री के उपदेश के प्रसंग को इन्ही भावों के साथ हम सभी आत्मसात करें जैसे पूज्य शान्तिसागरजी महराज प्रत्यक्ष में हमारे कल्याण के लिए ही यह उपद

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(रावण के सन्दर्भ में) शीलाचार का महत्व

अब तक हमने रामकथा के इक्ष्वाकुवंश एवं वानरवंश के पात्रों के माध्यम से रामकथा के संदेश को समझने की कोशिश की। अब राक्षसवंश के प्रमुख पात्र रावण के माध्यम से शीलाचार के महत्व को भी समझने का प्रयास करते हैं। जिस प्रकार रामकाव्य के नायक श्री राम का चरित्र मात्र सीता के परिप्रेक्ष में उनके राजगद्दी पर बैठने से पूर्व तथा राजगद्दी पर बैठने के बाद भिन्नता लिए हुए है वैसे ही रावण का चरित्र भी सीता हरण से पूर्व तथा सीता हरण के बाद का भिन्नता लिए हुए हैं। शीलपूर्वक आचरण को भलीभाँति सरलतापूर्वक समझने हेतु रा

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?मंगलमय भाषण की विशेष बात - अमृत माँ जिनवाणी से - १५७

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,             प्रस्तुत प्रसंग में लेखक द्वारा सल्लेखनारत पूज्य शान्तिसागर महराज के साधना के अंतिम दिनों में उपदेशों को चिरकाल के लिए संरक्षित किए जाने के लिए, किए जाने वाले प्रयासों का मार्मिक उल्लेख किया है। ?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५७   ?          "मंगलमय भाषण की विशेष बात"               ८ सितम्बर सन् १९५५ को सल्लेखनारत पूज्य आचार्य शान्तिसागरजी महराज का २६ वें दिन जो मंगलमय भाषण रिकार्ड हो सका, इसकी भी अद्भुत कथा है। नेता बनने वाले लोग कहते थे,

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?हमारी कर्तव्य विमुखता - अमृत माँ जिनवाणी से - १५६

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५६    ?            "हमारी कर्तव्य-विमुखता"          आज के राजनैतिक प्रमुखों के क्षण-क्षण की वार्ता किस प्रकार पत्रों में प्रगट होती है, वैसी यदि सूक्ष्मता से इस महामना मुनिराज की वार्ताओं का संग्रह किया होता, तो वास्तव में विश्व विस्मय को प्राप्त हुए बिना नहीं रहता।         पाप प्रचुर पंचमकाल में सत्कार्यों के प्रति बड़े-२ धर्मात्माओं की प्रवृत्ति नहीं होती है। वे कर्तव्य पालन में भूल जाते हैं।          कई वर्षों से मैं प्रमुख लोगों से, जैन मह

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?पार्श्वमती अम्मा - अमृत माँ जिनवाणी से - १५५

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,           प्रस्तुत कथन में लोकोत्तर व्यक्तित्व पूज्य शांतिसागरजी महराज को पुत्र के रूप में जन्म देनी वाली माँ का उल्लेख क्षुल्लिकाश्री पार्श्वमति माताजी ने किया है।          निश्चित ही एक परम् तपस्वी निर्ग्रंथराज को जनने वाली माँ के जीवन चरित्र को जानकर भी अद्भुत आनंद अनुभूति होना स्वाभाविक बात है। उनकी माँ की जीवन शैली को जाकर लगता है कि एक चारित्र चक्रवर्ती बनने वाले मनुष्य को जन्म देनी वाली माता का जीवन कैसा रहता होगा। ?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५५    

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?संघपति का महत्वपूर्ण अनुभव - अमृत माँ जिनवाणी से - १५४

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५४    ?             "संघपति का महत्वपूर्ण अनुभव"          संघपति सेठ गेंदनमलजी तथा उनके परिवार का पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के संघ के साथ महत्वपूर्ण सम्बन्ध रहा है। गुरुचरणों की सेवा का चमत्कारिक प्रभाव , अभ्युदय तथा समृद्धि के रूप में उस परिवार ने अनुभव भी किया है।        सेठ गेंदनमलजी ने कहा था- "महराज का पुण्य बहुत जोरदार रहा है।हम महराज के साथ हजारों मील फिरे हैं, कभी भी उपद्रव नहीं हुआ है। हम बागड़ प्रान्त में रात भर गाड़ियों से चलते

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?मार्मिक विनोद - अमृत माँ जिनवाणी से - १५३

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५३    ?                    "मार्मिक विनोद"            पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज सदा गंभीर ही नहीं रहते थे। उनमे विनोद भी था, जो आत्मा को उन्नत बनाने की प्रेरणा देता था। कुंथलगिरि में अध्यापक श्री गो. वा. वीडकर ने एक पद्य बनाया और मधुर स्वर में गुरुदेव को सुनाया।        उस गीत की पंक्ति थी- "ओ नीद लेने वाले, तुम जल्द जाग जाना।"        उसे सुनकर महराज बोले- "तुम स्वयं सोते हो और दूसरों को जगाते हो। 'बगल में बच्चा, गाँव में टेर' -कितनी

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?दिव्यदृष्टि - अमृत माँ जिनवाणी से - १५२

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५२   ?                     "दिव्यदृष्टी"        पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का राजनीति से तनिक भी सम्बन्ध नहीं था। समाचार-पत्रों में जो राष्ट्रकथा आदि का विवरण छपा करता है, उसे वे न पढ़ते थे, न सुनते थे। उन्होंने जगत की ओर पीठ कर दी थी।         आज के भौतिकता के फेर में फँसा मनुष्य क्षण-क्षण में जगत के समाचारों को जानने को विहल हो जाता है। लन्दन, अमेरिका आदि में तीन-तीन घंटों की सारे विश्व की घटनाओं को सूचित करने वाले बड़े-बड़े समाचार पत्र छप

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?एकांतवास से प्रेम - अमृत माँ जिनवाणी से - १५१

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १५१    ?               "एकांतवास से प्रेम"              आचार्य महाराज को एकांतवास प्रारम्भ से ही प्रिय लगता रहा है। भीषण स्थल पर भी एकांतवास पसंद करते थे। वे कहते थे- "एकांत भूमि में आत्मचिंतन और ध्यान में चित्त खूब लगता है।"           जब महराज बड़वानी पहुँचे थे, तो बावनगजा(आदिनाथ भगवान की मूर्ति) के पास के शांतिनाथ भगवान के चरणों के समीप अकेले रात भर रहे थे। किसी को वहाँ नहीं आने दिया था। साथ के श्रावकों को पहले ही कह दिया था, आज हम अकेले ही ध्यान क

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सुप्रीम कोर्ट ने जैन प्रथा संथारा से हटाई रोक - आप सभी को शुभकामनाए

जैन समाज  की संथारा/सल्लेखना प्रथा पर रोक लगाते राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर  सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए स्टे लगा दिया। यह संभव हुआ आप सभी के प्रयासो से, णमोकार मंत्र के जाप से, और आप सभी के मौन जुलूस मे उपस्तिथि से.सभी को धन्यवाद एवं हार्दिक शुभकामनाए.

Saurabh Jain

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